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परिचय |
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बहियाँ देखी जावें तो कई बातें सहज ही समझमें आ सकती हैं । इसके सिवाय दूसरा उपाय यह है कि उनके विचारोंके संग्रहका - जो कि 'श्रीमद् राजचंद्र'के नामसे प्रकाशित हो चुका है - सूक्ष्म दृष्टिसे अवलोकन किया जाये ।
उसमेंसे कुछ पत्र यहाँ उद्धृत किये जाते हैं । इन परसे पाठक जान सकेंगे कि श्रीमद् राजचंद्र व्यापारिक विषयोंमें कितनी कुशलताके साथ काम-काज करते थे । साथ ही उन्हें इस बातका भी ज्ञान हो जायगा कि श्रीमद् राजचंद्र जवाहरात के जैसे बड़े व्यापार में जिस भाँति मन गड़ा कर काम करते थे उसी भाँति छोटे - साधारण - व्यापारमें भी खूब उपयोग देते थे । कर्त्तव्यकी दृष्टिसे थोड़े और बहुत लाभवाले सभी व्यापार-धंदे उनके लिए एकसा महत्त्व रखते थे । और यही कारण है कि उनकी इस दृष्टि उन्हें बहुत कुछ सफलताके द्वार पर पहुँचा दिया था । वे पत्र ये हैं
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“यहाँ मैं कल आया हूँ । तुम्हारा पत्र मिल गया । पढ़ कर सब हाल ज्ञात किये । संघवी घेला वालजीका कपड़े संबंधी कोई काम-काज तुम्हारे पास आवे तो उसे बराबर तलाश करके करना । उन्हें अवकाश हो तो अपने साथ लेजा कर खरीद करना । रेशमी ओढ़नी वगैरह वे मँगावें तो उनका पना पोत, रंग तथा अच्छा बंधेज देख कर खरीदना । यह माल भीमजी बल्लभजीके यहाँका अच्छा होता है; परन्तु दूसरी जगहसे इनके यहाँ कुछ दाम अधिक लगते हैं । भोयतलेके नाके पर एक खत्री बैठता है । उसके यहाँसे कई बार हम माल खरीद भी चुके हैं ।
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