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परिचय |
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महाराजने ' सम्मति - पुस्तक' में लिखा कि “पाठशालाके अध्यापक महाशयने एक दूसरे लड़केके लिए छात्रवृत्ति देनेकी सूचना की है; परन्तु हमें राजचंद्र सबसे अधिक हुशियार और चालाक जान पड़ता है, इस लिए आज्ञा दी जाती है कि वह छात्रवृत्ति राजचंद्रको दी जावे ।" श्रीमद् राजचंद्रने स्वयं भी इस शक्तिको पुनर्जन्मका संस्कार बतलाया है । उन्होंने अपने विषय में एक लेखमें लिखा हैः
लघुवयथी अद्भुत थयो, तत्वज्ञाननो बोध । एज सूचवे एमके, गति आगति काँ शोध || जे संस्कार थवा घटे, अति अभ्यासे काँइ । विना परिश्रम ते थया, भव शंका शी त्याँय ? ॥
अर्थात् - छोटी उम्र में जो इतना अद्भुत तत्त्व- ज्ञान हो गया वही इस बातको सूचित करता है कि ( जीवका ) आवागमन होता है, फिर उसमें शोध क्या करना । जो संस्कार बहुत अभ्यास करनेसे होते हैं वे बिना परिश्रम किये ही हो गये तब फिर भव-धारणमें शंका ही क्या रह जाती है ?
यह बात कुछ विस्तार के साथ लिखना पड़ी है; परन्तु ऐसा करने के सिवाय गत्यन्तर नहीं था । यदि सिर्फ इतना ही कह दिया जाता कि श्रीमद राजचंद्र में अमुक प्रकारकी असाधारण शक्ति थी तो पाठक इसका अर्थ यह कर सकते थे कि राजचंद्रकी प्रशंसा करनेवालोंने उनकी तारीफमें अतिशयोक्ति की है । परंतु यदि यह बताया जाय कि वे असाधारण शक्तियाँ अमुक प्रकारकी थीं तो उससे उन पर प्रतीति होगी और इस
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