________________
१०
श्रीमद् राजचन्द्र
खाभाविक शक्तिके लिए अभिमान होना चाहिए। उस भूमि तथा उस जननीको धन्य है कि जिसकी कृपाने भारत-भूषण महात्मा राजचंद्रको शतावधान-पर्यन्त पहुँचनेको उत्साहित किया।"
'धर्म-दर्पण'के इस लेखके लगभग एक वर्ष पहले-सोलह वर्षकी उम्रमें-श्रीमद् राजचंद्रने एक 'मोक्षमाला' नामकी ग्रन्थमालाके निकालनेका विचार किया था। इस मालामें इस समय आपकी लिखी हुई 'भावनाबोध' नामकी एक पुस्तक निकली है। इस पुस्तकको कविने अपनी सोलह वर्ष और पांच महीनेकी उम्र में लिखा था। इसे भी उनने 'मोक्षमाला' के जितनी ही विस्तृत लिखनेका विचार किया था, परन्तु फिर विचार हुआ कि इस रूपमें वह पाठकोंको कठिन पड़ जायगी। इस कारण फिर उन्होंने वर्तमानमें 'मोक्षमाला' जितनी बड़ी है उतनी ही बड़ी उसे लिखना शुरू की। उसका एक भाग 'भावनाबोध'के रूपमें प्रकाशित किया गया है । 'भावनाबोध'की रचनाके देखनेसे इस बातका आभास हो सकेगा कि उस समय कविके विचार किस प्रकारके थे। विस्तारके भयसे 'भावनाबोध'का कोई विशेष अंश उद्धृत न करके केवल उसके उपोद्घातका एक थोड़ासा अंश यहाँ उद्धृत किया जाता है।
"चाहे जैसे तुच्छ विषयोंमें प्रवृत्ति होने पर भी निर्मल आत्माओंका खाभाविक वेग वैराग्यकी ओर ही जाता है। बाह्य-दृष्टिसे ऐसे आत्मा जब तक संसारके माया-जालमें फँसे रहते हैं तब तक उक्त विषयकी सिद्धि संभवतः दुर्लभ है; तथापि यह निस्सन्देह है कि सूक्ष्म-दृष्टि से अवलोकन करने पर इसका प्रमाण बहुत सुलभतासे मिल सकता है।"
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org