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आत्मसिद्धि। निश्चय सर्वे ज्ञानीनो, आवी अन्न समाय । धरी मौनता एम कही, सहज समाधिमांय ॥ ११८॥
सर्वेषां ज्ञानिनामत्र समाप्तिमेति निश्चयः। उक्त्वैवं गुरुणा मौनं समाधौ सहजे धृतम् ॥ ११८ ॥ अर्थात्-सब ज्ञानी-महात्माओंका निश्चय यहीं आकर स्थिर-होता है। इस प्रकार उपदेश देकर सद्गुरुने मौन धारण कर लिया-वचन-योगकी प्रवृत्तिका त्याग कर वे सहज समाधिमें स्थिर हो गये।
शिष्यको ज्ञान-लाभ।
सद्गुरुना उपदेशथी, आव्युं अपूर्व भान । निजपद निजमांही लघु, दूर थयुं अज्ञान ॥ ११९ ॥
सद्गुरोरुपदेशात् त्वाऽऽगतं भानमपूर्वकम् । निजे निजपदं लब्धमज्ञानं लयतां गतम् ॥ ११९ ॥
अर्थात्-सद्गुरुके उपदेशसे शिष्यको वह अपूर्व भान हुआ जो पहले कभी न हुआ था। और अपना यथार्थ खरूप अपने ही आत्मामें प्रतिभासित होकर उसका देहादिमें आत्म-बुद्धि-रूप सब अज्ञानभाव दूर हो गया।
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