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आत्मसिद्धि । संश्चेतनामयो जीवः सर्वाभासविवर्जितः। प्राप्यते स यतः शुद्धो मोक्षमार्गः स एव भोः! ॥१०॥ अर्थात्---शुद्धात्मा सत्-'अविनाशी' है, 'चैतन्यमय'-सब पदार्थोंके प्रकाशित करनेवाले स्वभाव-रूप-है, और 'केवल'-सब विभाव और देहादिकके संयोगसे रहित-है। ऐसे शुद्धात्माकी प्राप्तिके लिए प्रवृत्त होना 'मोक्ष-मार्ग' है। कर्म अनंत प्रकारनां, तेमा मुख्ये आठ। तेमां मुख्ये मोहिनिय, हणाय ते कहुं पाठ ॥ १०२॥
अनन्तभेदकं कर्म चाष्टौ मुख्यानि तेष्वपि । तत्राऽपि मोहना मुख्या वक्ष्ये तद्धनने विधिम् ॥१०२॥
अर्थात्-वैसे तो कर्म अनन्त प्रकारके हैं। परन्तु मुख्यतासे उनमें आठ प्रकारके हैं। उनमें भी मुख्य मोहनीय-कर्म है। उसका नाश करनेका उपाय मैं नीचे बतलाता हूँ। कर्म मोहनीय भेद बे, दर्शन, चारित्र नाम । हणे बोध वीतरागता, अचूक उपाय आम ॥ १०३ ॥
मोहनं द्विविधं तत्र दृष्टि-चारित्रभेदतः। बोधो हि दर्शनं हन्याच्चारित्रं रागहीनता ॥ १०३ ॥ अर्थात्-उस मोहनीय कर्मके दो भेद हैं। एक 'दर्शनमोहनीय' और दूसरा 'चारित्रमोहनीय' । दर्शनमोहनीय वह है जो परमार्थमें अपरमार्थ-रूप बुद्धिको और अपरमार्थमें परमार्थ-रूप बुद्धिको करता है, और
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