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आत्मसिद्धि।
सुगुरुका उत्तर
सुगुरु कहते हैं-'मोक्षका उपाय है' । समाधान सुनो । पांचे उत्तरनी थई, आत्मा विषे प्रतीत । थाशे मोक्षोपायनी, सहज प्रतीत ए रीत ॥ ९७॥
पञ्चोत्तरेण संजाता प्रतीतिस्तव ह्यात्मनि ।
मोक्षोपायस्तथा तात ! एष्यति सहजं मनः ॥९७॥ अर्थात्-जब पाँच प्रश्नों के उत्तरसे तुम्हारे आत्मामें सन्तोष हो गया तब मोक्षका उपाय सुन कर भी इसी तरह सहज ही तुम्हें सन्तोष हो जायगा । यहाँ 'हो जायगा' और 'सहज' ये जो दो शब्द कहे गये हैं उनसे सुगुरुका यह मतलब है कि जिसके पाँच प्रश्न हल हो गये उसके मोक्षके उपाय विषयक छठे प्रश्नका हल हो जाना भी कोई कठिन बात नहीं है अथवा इस लिए इन शब्दोंको समझना चाहिए कि शिष्यकी विशेष जिज्ञासाके कारण मोक्षका उपाय उसे अवश्य लाभ होगा । गुरु महाराजको ऐसा ही भान हुआ है।
कर्मभाव अज्ञान छे, मोक्षभाव निजवास। अंधकार अज्ञान सम, नाशे ज्ञानप्रकाश ॥ ९८॥
अज्ञानं कर्मभावोऽस्ति मोक्षभावो निजस्थितिः । ज्वलिते ज्ञानदीपे तु नश्येदज्ञानतातमः ॥ ९८ ॥
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