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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत
बहुत हैं । तब इस दोष के कारण भी मोक्षके उपायका प्राप्त होना संभव नहीं दिखाई पड़ता।
तेथी एम जणाय छे, मळे न मोक्ष-उपाय। जीवादि जाण्या तणो, शो उपकारज थाय ॥९॥
तत एवं हि संसिद्धं मोक्षोपायो न विद्यते ।
जीवादिज्ञानसंप्राप्तौ कोपकारो भवेदहा!!॥ १५ ॥ अर्थात्-इन सब बाधाओंके आनेसे यह जान पड़ता है कि मोक्ष का उपाय प्राप्त नहीं हो सकता । तब फिर जीवादिका स्वरूप समझनेसे क्या उपकार हो सकता है ? अर्थात्-जिस पदकी प्राप्तिके लिए इनका खरूप समझना आवश्यक प्रतीति होता है उसकी प्राप्तिका उपाय ही अशक्य है। पांचे उत्तरथी थयु, समाधान सर्वांग । समजु मोक्ष-उपाय तो, उदय उदय सद्भाग्य ॥९६
प्रश्नपञ्चोत्तरे लब्धे समाधिः सकलोऽजनि ।
यदि तत् साधनं विद्यां शिवं श्रेयो भवेच्छिवम् ९६ अर्थात्-शिष्य कहता है कि आपने जो ऊपर मेरी पाँच शंकाओंका समाधान किया उससे पूर्णपने मुझे सन्तोष हुआ । परन्तु उसी प्रकार जो मोक्षका उपाय भी मेरी समझमें आ जाय तो फिर मेरे सौभाग्यका उदय-पूर्ण उदय-हो जाय । यहाँ पर दो बार 'उदय' शब्दके कहनेसे यह आशय जान पड़ता है कि ऊपर पाँच प्रश्नोंका उत्तर सुनकर शिष्यकी जिज्ञासा-बुद्धि मोक्षका उपाय जाननेके लिए अत्यन्त तीव्र
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