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आत्मसिद्धि। आत्मानी शंका करे, आत्मा पोते आप। शंकानो करनार ते, अचरज एह अमाप ॥ ५८॥
आत्मानं शङ्कते आत्मा स्वयमज्ञानतो ध्रुवम् ।
यः शङ्कते स वै आत्मा स्वेनाऽहो ! स्वीयशङ्कनम् ५८ अर्थात्-आत्मा आत्माके ही सम्बन्धमें जो शंका करता है आश्चर्य है कि वह नहीं जानता कि यह शंका करनेवाला ही स्वयं आत्मा है।
शिष्यकी शंका।
शिष्य कहता है कि 'आत्मा नित्य नहीं है
आत्माना अस्तित्वना, आपे कह्या प्रकार। संभव तेनो थाय छे, अंतर कर्ये विचार ॥ ५९॥ शिष्ये भगवता प्रोक्ता आत्माऽस्तित्वस्य युक्तयः ।
ततः संभवनं तस्य ज्ञायतेऽन्तर्विचारणात् ॥ ५९ ॥ अर्थात्-आत्माके अस्तित्वके सम्बन्धमें आपने जो जो बातें समझाई उन पर हृदयमें विचार करनेसे यह तो संभव होता है कि आत्मा है।
बीजी शंका थाय त्यां, आत्मा नहीं अविनाश । देहयोगथी उपजे, देहवियोगे नाश ॥ ६॥
तथाऽपि तत्र शङ्काऽऽत्मा नश्वरः, नाविनश्वरः। देहसंयोगजन्माऽस्ति देहनाशात् तु नाशभाक्॥६०॥
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