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श्रीमद् राजचन्द्रप्रणीत__ अर्थात्-परन्तु साथ ही यह शंका होती है कि आत्माके होने पर भी वह अविनाशी-नित्य-नहीं है। वह तीनों. कालमें रहनेवाली वस्तु नहीं है। किन्तु शरीरके संयोगसे उत्पन्न होता है और शरीरके नाशके साथ ही नष्ट हो जाता है।
अथवा वस्तु क्षणिक छे, क्षणे क्षणे पलटाय । ए अनुभवथी पण नहीं, आत्मा नित्य जणाय ६१
अथवा क्षणिकं वस्तु परिणामि प्रतिक्षणम् ।
तदनुभवगम्यत्वान्नाऽऽत्मा नित्योऽनुभूयते ॥ ६१ ॥ अर्थात्-अथवा वस्तुयें जो क्षण क्षणमें बदलती हुई देखी जाती हैं इससे सिद्ध है कि सब वस्तुयें क्षणिक हैं और इसी अनुभवसे यह बात जानी जाती है कि आत्मा नहीं है।
सद्गुरुका उत्तर ।
गुरु कहते हैं कि 'आत्मा नित्य है'; और वह इस तरह सिद्ध हैदेह मात्र संयोग छे, वळी जड, रूपी, दृश्य । चेतनानां उत्पत्ति लय, कोना अनुभव वश्य ? ॥६२ देहमात्रं तु संयोगि दृश्यं रूपि जडं धनम् । जीवोत्पत्ति-लयावत्र नीतौ केनाऽनुभूतिताम् ॥६२॥
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