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आत्मसिद्धि ।
२२ मोक्ष-मार्ग समझमें आ जाय वह विषय छह पदों द्वारा गुरु-शिष्यके संवादरूपसे कहा जाता है। 'आत्मा छे,' 'ते नित्य छ, 'छे का निजकर्म। 'छे भोक्ता, वळी 'मोक्ष छे' 'मोक्षउपाय सुधर्म ॥४३
जीवोऽस्ति स च नित्योऽस्ति कर्ताऽस्ति निजकर्मणः।
भोक्तास्ति च पुनर्मुक्तिर्मुक्त्युपायः सुदर्शनम् ॥ ४३ अर्थात्---'आत्मा है,' 'वह नित्य है,' 'अपने कर्मोंका कर्ता हैं, कर्मोंका भोक्ता है, उससे मोक्ष होता है, और वह मोक्षका उपाय-रूप सद्धर्म है। षट्स्थानक संक्षेपमां, षदर्शन पण तेह । समजावा परमार्थने, कह्यां ज्ञानीए एह ॥४४॥ षट्स्थानीयं समासेन दर्शनानि षडुच्यते ।
[षड्दर्शन्यपि उच्यते ] प्रोक्ता सा ज्ञानिभिआतुं परं तत्त्वं धरास्पृशाम् ॥४४ अर्थात्-ये जो छह स्थानक या छह पद यहाँ संक्षेपमें कहे गये हैं विचार करनेसे जान पड़ेगा कि छह दर्शन भी ये ही हैं। इन छहों पदोंको ज्ञानी जनोंने परमार्थ समझानेके लिए कहा है।
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