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परिचय ।
चाहिए । तुम्हारी सद्वृत्तियों पर विश्वास है, अतएव इस विषयमें अधिक लिखना योग्य नहीं जान पड़ता । अन्तमें कहना यह है कि जिस प्रकार सदाचार और सद्विचारोंका पालन किया जा सके उसी प्रकार प्रवृत्ति करनी योग्य है।
दूसरी नीची जाति तथा मुसलमानादिके यहाँ कभी कोई निमंत्रणका मौका आवे और अन्नाहारकी जगह न पकाया हुआ फलाहार करने पर उन लोगोंका उपकार संभव हो तो वैसा करना अच्छा है।"
सं० १९५२, कुँवार विदी ३, ) ____ शुक्रवार-आणंद।
अब अन्तमें इस विषयको समाप्त करनेके पहले तीन श्रेणीके लोगोंका ध्यान खास करके इस विषयकी ओर आकर्षित किया जाता है। सबसे पहले भारतवासियोंका लक्ष्य इस ओर खींचा जाता है । उन्हें सोचना चाहिए कि एक उन्नीस वर्षकी अवस्थावाले जिस व्यक्तिके सम्बन्धमें यह लिखा गया है कि “ऐसी महान् शक्तिका धारक यदि यूरप या अमेरिकामें होता तो वह बड़ी मान-मर्यादा लाभ करता, ऐश्वर्य-वैभव प्राप्त करता; और इसी प्रकार सरकार और प्रजा ऐसे व्यक्तिको उत्साहित कर एक उच्च प्रतिष्ठाके आसन पर विराजमान करती।"-तब क्या भारतवासियोंको दुनियाके सामने यह बात प्रकट कर अभिमान नहीं करना चाहिए कि
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