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________________ श्रीमद् राजचन्द्र भारतवर्षमें जो पहले असाधारण शक्तिके धारक माहात्मा-गण हो गये हैं उन्हींके प्रत्यक्ष उदाहरण-स्वरूप श्रीमद् राजचंद्र हैं । श्रीमद् राजचंद्रकी शासनके पुनरुद्धार-सम्बन्धी जो महत्त्वाकांक्षा थी उसे पूर्ण हुए बिना ही वे मात्र बत्तीस वर्षकी अवस्थामें स्वर्गवासी हो गये । उस समय उनका जो वृत्तान्त प्रगट किया गया था उसका बहुत ही संक्षिप्त सार मृत्यु-समाचारके रूपमें उनके स्नेहियोंने अँगरेजीके प्रसिद्ध पत्र 'पायोनियर में प्रकाशित होनेके लिए भेजा था। उसे देख कर 'पायोनियर के खामीके हृदयमें श्रीमद् राजचंद्रके प्रति बहुत ही आदर बुद्धि हुई; और यही कारण था कि उस लेखको उन्होंने 'आजके भारतीय' शीर्षक देकर अग्रलेखके रूपमें प्रकाशित किया। इस शीर्षकके देनेसे उनका यह हेतु हो सकता है कि वे अपने पाठकोंको यह बात बतलाना चाहते थे कि इस जमानेमें भी ऐसे शक्तिशाली पुरुष होते हैं। एक छोटेसे लेखसे विदेशियोंको जब इतना अभिमान हुआ तब भारतवासियोंको-जो कि उनके विषयमें बहुत कुछ जानते हैं तथा जिन्होंने उनके विचारोंका पूर्ण अभ्यास-परिशीलन किया हैइसके लिए उन्हें कितना अभिमान करना चाहिए कि ऐसे पुरुष उनके देशमें उत्पन्न होते हैं। इसके बाद आत्म-वादियोंको श्रीमद् राजचंद्रके प्रति अभिमान होना चाहिए। क्या एक भारीसे भारी नास्तिक या साइन्टिस्ट इस बातका खुलासा कर सकते हैं कि ऐसी शक्तियाँ कब और किस प्रकार श्रीमद् राजचंद्रको प्राप्त हुई ? विश्वास है कि वे इस विषयका खुलासा करनेमें सफलता लाभ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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