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परिचय ।
उत्तर-इस बातको केवल श्रद्धासे मान लिया जाय तो ऐसा हो सकता है। परन्तु प्रमाण द्वारा यह बात सिद्ध नहीं हो सकती। जिस प्रकार गीता और वेदोंके ईश्वर-कृत न होने में मैंने जो दलीलें दी हैं उन्हें ही बाइबिलके सम्बन्धमें भी समझ लेना चाहिए । देखो, ईश्वर वह है जो जन्म-मरणसे छुटकारा पा गया हो, अतएव जो अवतार लेता हो-जन्म धारण करता हो—वह ईश्वर नहीं हो सकता; क्योंकि जन्मधारण करनेके कारण राग-द्वेष हैं और ईश्वर राग-द्वेषसे रहित है । तब विचार करने पर यह बात यथार्थ नहीं जान पड़ती कि ऐसा राग-द्वेष-रहित ईश्वर अवतार धारण करे । तथा यह बात भी विचार करने पर कदाचित् एक रूपककी तरह ठीक बैठ जाय कि 'यीशू' ईश्वरका पुत्र है या था; परन्तु प्रत्यक्ष प्रमाणसे तो यह सदोष ही है। मुक्त ईश्वरका पुत्र हो ही कैसे सकता है ? और कदाचित् ऐसा मान भी लें तो फिर उसकी उत्पत्ति किस तरह मानी जायगी ? और इन दोनों ही बातोंको यदि अनादिसे मानले तो फिर 'पिता-पुत्र' का सम्बन्ध ही कैसे बन सकेगा ? ये सब बातें बहुत विचारणीय हैं और मेरा विश्वास है कि इन पर विचार करनेसे ये सत्य भी न जान पड़ेंगीं।
१५ वाँ प्रश्न-पुराने करारमें जो भविष्य कहा गया है वह यीशूके विषयमें प्रायः सत्य हुआ है ?
उत्तर—यह हो तो भी दोनों शास्त्रोंके सम्बन्धमें विचार करना योग्य जान पड़ता है। इसी प्रकर ऐसा भविष्य भी यीशूको ईश्वरका अवतार कहनेमें कोई बलवान् प्रमाण नहीं हैं। क्योंकि ज्योतिष आदिके द्वारा भी महात्माओंकी उत्पत्तिका बतला देना संभव है । अथवा हो सकता है कि किसी ज्ञानके द्वारा ऐसी बात बतलादी गई हो; परन्तु ऐसे भविष्य
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