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श्रीमद् राजचन्द्र
अनर्थ, धर्म अधर्म आदि सभी उत्तम ठहरेंगे । वस्तुकी उत्तमता और अनुत्तमता तो प्रमाण द्वारा ही समझी जाती है। जो धर्म संसारके नष्ट करने में सबसे उत्तम हो और आत्म-स्वरूपमें स्थिति कराने में बलवान् हो वही धर्म उत्तम है और वही धर्म बलवान् है ।
१३ वाँ प्रश्न – क्रिश्चियन धर्मके सम्बन्धमें आप कुछ जानते हैं ? और जानते हैं तो इस विषय में आपके क्या विचार हैं ?
उत्तर - क्रिश्चियन धर्मके सम्बन्ध में मुझे साधारण जानकारी है । और यह बात साधारण ज्ञान होने पर भी समझमें आ सकती है कि भारतके महात्माओंने जिस प्रकार धर्मका शोध किया है और उस पर विचार किया है वैसा विदेशियों द्वारा न शोध किया गया है और न वैसा विचार ही किया गया है । उसमें जीव सदा पर वश बतलाया गया है, यहाँ तक कि मोक्ष में भी उसकी यही हालत बतलाई गई है । उसमें जीवके अनादि स्वरूपका जैसा चाहिए वैसा विवेचन नहीं है और न कर्मोंकी ठीक ठीक व्यवस्था तथा उनकी निवृत्तिका ठीक ठीक उपाय ही बतलाया गया है । क्रिश्चियन धर्मके विषयमें मेरे विचार इस बातको नहीं मान सकते कि " वह धर्म सर्वोत्तम है ।" ऊपर जिन बातोंका उल्लेख किया गया है उनका क्रिश्चियन धर्ममें योग्य समाधान नहीं दिखाई पड़ता । यह बात मैंने कोई मतभेदके वश होकर नहीं कही है । इस विषयमें और कोई अधिक पूछने योग्य बातें जान पड़े तो उन्हें पूछिएगा; उनका और विशेषतया समाधान किया जा सकेगा ।
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१४ वाँ प्रश्न - ये लोग कहते हैं कि 'बाइबिल' ईश्वर प्रेरित है और यीशू उसका अवतार है; उसका पुत्र है । क्या वह ऐसा था ?
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