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________________ ९६ श्रीमद् राजचन्द्र देखने या अनुभवमें नहीं आता जिसका ऐश्वर्य इस ऐश्वर्य से विशेष हो। इससे यह स्थिर किया है कि 'ईश्वर' यह आत्माका दूसरा पर्यायवाची नाम है; और इसी कारण मेरा दृढ़ निश्चय है कि इससे विशेष सत्ताशाली कोई पदार्थ ईश्वर नहीं है । ( २ ) वह ईश्वर जगत्का कर्त्ता नहीं है अर्थात् परमाणु, आकाश आदि पदार्थ नित्य हैं । वे किसी दूसरे पदार्थसे नहीं बन सकते । कदाचित् यह माना जाय कि वे ईश्वरसे बनते हैं तो यह बात भी उचित नहीं जान पड़ती; क्योंकि यदि ईश्वरको चेतन माना जाय या ईश्वर में चेतनता मानी जाय तो ईश्वरसे परमाणु, आकाश आदि कैसे उत्पन्न हो सकते हैं ? कारण यह कभी संभव नहीं कि चेतनसे जड़ उत्पन्न हो सके। और यदि ईश्वरको भी जड़ मान लिया जाय तो फिर वह ऐश्वर्यशाली नहीं रह सकता । जिस प्रकार ईश्वरसे जड़की उत्पत्ति संभव नहीं उसी प्रकार उससे जीव-रूप 'चेतन वस्तु' की भी उत्पत्ति असंभव है । और यदि ईश्वरको उभय-स्वरूप - जड़-चेतन स्वरूप मान लिया जाय तो इसका परिणाम यह होगा कि फिर हमें जगत्का ही दूसरा नाम ईश्वर रख कर सन्तोष कर लेना पड़ेगा; क्योंकि जगत् उभय-स्वरूप --- जड़-चेतन स्वरूप - है । कदाचित् परमाणु, आकाश आदिको ईश्वरसे जुड़े ही मान कर ईश्वरको कर्मों का फल देनेवाला माना जाय तो यह भी सिद्ध नहीं हो सकता। इस विषयमें 'षड्दर्शनसमुच्चय' में अच्छे प्रमाण दिये गये हैं । ३ रा प्रश्न -- “ मोक्ष क्या है ?" ---- उत्तर - आत्मा जो क्रोधादि अज्ञान रूप भावों में- देहादिमें बद्ध हो रहा है उनसे सर्वथा निवृत्त होनेको- छूट जानेको- 'मोक्ष' कहते हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002678
Book TitleAtmasiddhi in Hindi and Sanskrit
Original Sutra AuthorShrimad Rajchandra
AuthorUdaylal Kasliwal, Bechardas Doshi
PublisherMansukhlal Mehta Mumbai
Publication Year
Total Pages226
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Soul, Spiritual, & Rajchandra
File Size9 MB
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