________________
अनुवादकके दो शब्द
श्रीकुन्दकुन्दाचार्य और श्रीसमन्तभद्रस्वामी ये दोनों महात्मा वर्तमान दिगम्बर जैन साहित्य के प्राणप्रतिष्ठापक हैं। इनकी अमर रचनाओंने दिगम्बर जैन साहित्यकी श्रीवृद्धिके साथ उसकी कीर्तिको समुज्ज्वल किया है। बहुत समयसे मेरी इच्छा है कि उक्त दोनों प्राचार्यों की सभी उपलब्ध रचनाएँ उनके प्रामाणिक जीवनचरितके साथ 'कुन्दकुन्दभारती' और 'समन्त. मद्रभारती' के नामसे प्रकाशित की जावें । एक समय था कि जब लोग सूत्ररूप संक्षिप्त रचनाको मान देते थे,उसके वाद वृत्ति और भाष्य ग्रन्थोंको मान्यता मिलने लगी । मूल लेखकों के सारपूर्ण संक्षिप्त लेख वृत्ति-भाष्य और टीकाकारोंके वृहद् वक्तव्योंसे वेष्टित होकर सामने आये । भाषाकारों और टीकाकारोंमें इसबातकी होढ़सी होने लगी कि संक्षिप्त रचनाओंको देखें कौन अधिक विस्तृत कर सकता है। अब कुछ समय बदला है और लोगोंके हृदयमें पुनः यह आकांक्षा होने लगी है कि मूल लेखकके सारपूर्ण स्वतन्त्र अभिप्रायको टीकाकारोंके वृहद् वक्तव्योंसे अलग किया जाये। इसीसे 'कुन्दकुन्दभारती' और 'समन्तभद्रभारती' में दोनों आचार्योंके मूल ग्रन्थोंको सरल संक्षिप्त अनुवादके साथ संकलित करनेकी मेरी इच्छा रही है।
लगभग आठ दस वर्ष हुए तब अनवरत साहित्य-सेवी वयोवृद्ध श्रीजुगलकिशोरजी मुख्तारने मुझे इस आशयका एक पत्र लिखा कि मैं वीरसेवामन्दिरसे 'समन्तभद्रभारती'
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org