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________________ अनुवादकके दो शब्द mmmmmmmmmmmmmmmm नामक ग्रन्थ प्रकाशित करना चाहता हूँ,जिसमें समन्तभद्रस्वामीके उपलब्ध समस्त ग्रन्थोंका आधुनिक हिन्दी में सरल संक्षिप्त अनुवाद होगा ! आप स्तुतिविद्या (जिनशतक ) का अनुवाद करदें। बाबूजीका उक्त आशयवाला पत्र पाकर मुझे बहुत प्रसशता हुई भार मैंने स्तुतिविद्याका अनुवाद लिखनेकी स्वीकृति दे दी। साथही कार्य प्रारम्भ भी कर दिया। दो माहमें यह कार्य पूर्ण होगया और प्रेसकापी तैयार कर मैने मुख्तारजीके पास भेज दी। मेरा खयाल है कि सहयोग और साधनोंके अभावमें मुख्तारजी अपनी इच्छानुसार 'समन्तभद्रभारती' को प्रकाशित करने में शीघ्र ही अग्रसर नहीं हो सके। उन्होंने समन्तभद्रस्वामीके कुछ प्रन्थ फुटकर रूपसे प्रकाशित करना स्थिर किया और तदनुसार 'स्वयम्भूस्तोत्र' आदि कुछ ग्रन्थोंको वीरसेवामन्दिरसे प्रकाशित भी किया जाने लगा। अब 'स्तुतिविद्या' भी प्रका. शित कर रहे हैं। जिस रूपमें मैं इसे जनताके समक्ष रखना चाहता था उस रूपमें तो नहीं रख सका हूँ। पर पूर्ण साधनोंके अभाव में जिस रूप में भी इसे सामने रख रहा हूँ वह 'समन्तभद्रभारती' का एक परिचायक अङ्ग ही होगा। स्तुतिविद्या (जिनशतक) एक शब्दालंकार-प्रधान कान्यग्रन्थ है इसमें यमक तथा चित्रालंकारके जिन विविध रूपोंको आचार्य महोदयने सामने रक्खा है उन्हें देखकर आपके अगाध काव्य. कौशलका सहज ही पता चल जाता है। मेरा अनुभव है कि अर्थालंकारकी अपेक्षा शब्दालंकारकी रचना करना अत्यन्त कष्टसाध्य है । कुछ उत्तरवर्ती साहित्यकारोंने भले ही शब्दा. लंकारको काव्यके अन्तर्गत गडुभूत मानकर उपेक्षित किया है परन्तु उनके पूर्ववर्ती प्राचार्योंने इसे बहुत ही महत्व दिया है। अस्तु । जिनशतक, यद्यपि संस्कृतटीका और पं० लालारामजी कृत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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