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स्तुतिविधा हिन्दी अनुवाद के साथ पहले काशीसे प्रकट हो चुका है तथापि इसके आधुनिक अनुवादकी आवश्यकता थी। मैंने पूर्वमुद्रित पुस्तककी अशुद्धियोंको यथाशक्ति दूर करनेका प्रयत्न किया है और कितनेही श्लोकोंको वृहद् भावार्थ देकर स्पष्ट भी किया है। पाद-टिप्पणों में अलंकारगत तथा श्लोक-सम्बन्धी विशेषताको प्रदर्शित किया है । आवश्यकतानुसार संस्कृत टिप्पण भी कहीं-कहीं साथमें लगाये हैं और अंतमें चित्रालंकारके चित्र भी क्रमशः संकलित किये हैं। जहां तक भी हो सका है मैंने अपने अनुवादमें संस्कृत टीकाकारके भावको सुरक्षित रखा है, फिर भी जहां कहीं मुझे संस्कृतटीकासे कुछ विभिन्नता प्रदर्शित करनी थी वहां टिप्पणमें उल्लेख कर नूतन संस्कृतटीका भी लिखदी है; जैसा कि ८७ वें श्लोकके अनुवाद में किया गया है।
प्रयत्न करनेपर भी इस गहन ग्रन्थके अनुवादादिमें मेरे द्वारा भूलोंका होना अथवा अशुद्धियोंका रह जाना संभव है, जिनके लिये मैं विद्वानोंसे क्षमाप्रार्थी हूँ।
सागर
नम्र पन्नालाल जैन
ता० २२-६-१६५०
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