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स्तुतिविद्या अप्रिय है-विरोधी है परन्तु आप कमलोंके अप्रिय नहीं हैं (पक्ष में कमला-अनन्त चतुष्टयरूप लक्ष्मीके-प्रिय-पति है)। हे भगवन् ! इस तरह आप अनोखे चन्द्रमा हैं ॥३१॥ .
(मुरजः ) धाम त्विषां तिरोधानविकलो विमलोक्षयः ।
त्वमदोषाकरोस्तोनः सकलो विपुलोदयः ॥३२॥ चामेति-चन्द्रप्रभोऽभात् अत्रापि सम्बन्धनीयः । धाम अवस्थाअम् । त्विषां तेजसाम् । तिरोधानेन व्यवधानेन विकल: विरहितः अन्यत्राविकलः तिरोधानविकलः । विमलो निर्मल:, चन्द्रः पुनः समलः । वसीयत इत्यक्षयः, अन्यः सक्षयः । त्वं भट्टारकः । प्रदोषाणां गुणानां भाकरः निवासः, अन्यत्र दोषायाः रात्रेः पाकरः दोषाकरः । अस्ताः विताः ऊनाः असर्वज्ञतारकाः येनासावस्तोनः । सकलः सम्पूर्णः, अन्योऽ सम्पूर्णः । विपुल: महान् उदयः उद्गमो यस्यासी विपुलोदयः । अन्यः पुनः अविपुलोदयः । किमुक्कं भवति-त्वं चन्द्रप्रभः एवंविधगुणविशिष्टः सन् पृथ्वीमण्डले प्रभात शोभित इति सम्बन्धः ॥३२॥ ___ अर्थ- हे प्रभो ! आप चन्द्रमाक समान शोभायमान हैं अवश्य परन्त आपमें और उसमें भारी भेद है। आप केवलज्ञानरूप तेजके स्थान हैं-तेजस्वी हैं, परन्तु चन्द्रमा तेजसे रहित है। श्राप तिरोधानसे रहित हैं-संसारके किसी भौतिक पदार्थसे आपका आवरण नहीं होता, परन्तु चन्द्रमा मेघ आदिसे आवृत्त हो जाता है-छिपा लिया जाता है। आप विमल हैं-कर्ममलकलङ्कसे रहित है परन्तु चन्द्रमा समल है-कलङ्कसे सहित है। आप अक्षय हैं-विनाश रहित हैं आपके केवलज्ञादि गुणों का कभी नाश नहीं होता, परन्तु चन्द्रमा क्षय-सहित है-उदय होने के बाद अस्त हो जाता है। आप अदोषाकर हैं-दोषोंकी आकर (खानि) नहीं है-आपने क्षधा-तृषा आदि अठारह दोष
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