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________________ ANNNNN समन्तभद्र-भारतो (गुप्तक्रियो मुरजबन्धः।) दिव्यैर्वनिसितच्छत्रचामरैर्दुन्दुभिस्वनैः । दिव्यैर्विनिर्मितस्तोत्रश्रमददुरिमिर्जनैः ॥६॥ (युम्म) 1 यहां आवश्यक समझ कर सिर्फ मेदोंका वर्णन किया जाता है(१) जहांप्रथम और द्वितीय पादमें समानता हो उसे मुख यमक,(२)जहां प्रथम और तृतीय पाद में समानता हो उसे सन्दंश, ( ३) जहां प्रथम और चतुर्थपादमें समानता हो उसे प्रावृत्ति, ( ४ ) जहां द्वितीय तृतीय पाद में समानता हो उसे गर्भ, (५) जहां द्वितीय और चतुर्थपादमें समानता हो उसे संदष्टक, (६) जहां तृतीय और चतुर्थपादमें समानता हो उसे पुच्छ, (७) जहां चारों चरण एक समान हों उसे पंक्ति, (८) जहां प्रथम और चतुर्थ तथा द्वितीय और तृतीय पाद एक समान हों उसे परिवृत्ति, (१)जहां प्रथम और द्वितीय तथा तृतीय और चतुर्थ पाद एक समान हों उसे युग्मक, (१०) जहां श्लोक का पूर्वार्ध और अपराध एक समान हो उसे समुद्गक और (११) जहां एक हो श्लोक दो बार पढ़ा जाता है उसे महायमक अथवा श्लोकयमक कहते हैं । जैसे इस पुस्तकके श्वें श्लोकमें 'संदष्टक' यमक, १५वें श्लोकमें 'यग्मक' यमक २५वें और ५२वश्लोकमें 'समुद्गक' यमक, ११-१२ ३, १६-१७ वें, ३७-३८वें, ४६-४७ ३, ७६-७७, और १०६-१०७ वें श्लोकोंमें महायमक (श्लोकयमक) है । ये " भेद श्लोक, श्लोकार्ध, और पादकी श्रावृत्तिको अपेक्षासे किये गये हैं। पादांश, पदांश, और वर्णोकी आवृत्तिकी अपेक्षा अनेक भेद हो जाते हैं। देखो, निर्णयसागर बम्बईसे प्रकाशित साहित्यदर्पणको टिप्पणी । यमकालंकारके भेद-प्रभेदोंका विशेष वर्णन सरस्वती कण्ठाभरण आदि आकरप्रन्थों में देखना चाहिये । दिवि भवैर्दिव्यैः परे दिवि गगने+ऐ:-गतवान् इति पदच्छेदः। ऐइ गताविति धातोलेकि मध्यमपुरुषस्यैकवचने रूपम् । अत्र 'ऐ' इति क्रिया गुप्ता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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