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________________ स्तुतिविद्या अर्थ — जो पीडारहित - अनन्तसुखसम्पन्न है, प्राप्त हुईज्ञानावरण कर्मके अत्यन्त क्षयसे उपलब्ध — केवलज्ञानरूपी बुद्धिसे सहित हैं; जिन्हें उपाय - उपगम्य सेवनीय ( समझकर ) इन्द्र आदि श्रेष्ठ पुरुष नमस्कार करते हैं; जो पाप-कर्ममलसे रहित हैं; जो ( संसार - समुद्रके ) पारको पा चुके हैं अथवा जिन्होंने सब पदार्थ जान लिये हैं; जो शरण में आये हुए भव्यपुरुषों को लक्ष्मीद्वारा विस्तृत करते हैं-- केवलज्ञानादि लक्ष्मीसे युक्त करते हैं और जो उत्कृष्ट तथा अविनाशी मोक्षमन्दिर में सदा निवास करते हैं वे कल्याणप्रदाता जिनेन्द्र भगवान् भक्ति से सन्मुख आये हुए मुझ भक्तकी सदा रक्षा करें - उनके भक्तिपूर्वक आराधनसे मैं अपना आत्मविकास करने में समर्थ हो सकू । ॥३, ४ ॥ (साधिकपादाभ्यालयमक:' :') 3 नतपीला सनाशोक सुमनोवर्षभासितः ३ । भामण्डलासनाऽशोकसुमनोवर्ष भासितः॥ ५ ॥ १ यहां प्रथम पादके अन्तिम पांच अक्षरों और द्वितीय पादको पुनरावृत्ति की गई है, अतः 'साधिकपादाभ्यास यमकालंकार' है जिसका लक्षण निम्न प्रकार हैं :--- 'श्लोकपादपदावृत्तिर्वर्णावृत्तिर्युताऽयुता । भिन्नवाच्यादिमध्यान्तविषया यमकं हि तत् ॥' - अलंकार चिन्तामणि, पृष्ठ ४६ । जहां अर्थको भिन्नता रहते हुए श्लोक, पाद, पद और वर्णोंकी पुनरावृत्ति होती है वहां यमकालंकार होता हैं । वह श्रावृत्ति पाद श्रादि मध्य अथवा अन्त में होती हैं तथा कहीं अन्य पादपद और वर्णों से व्यवहित होती है और कहीं श्रव्यववति । अलंकारविपयके प्राचीन प्रन्धों में इस अलंकार के अनेक भेद बतलाये हैं परन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002677
Book TitleStutividya
Original Sutra AuthorSamantbhadracharya
Author
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1912
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Devotion, Worship, P000, & P015
File Size9 MB
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