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मंगलाचरण यचे तोर्जलधेर्जातं स्तुतिविद्या-सुधाभरम् । निपीय निर्जर्रा जाता विबुधा जगती-तले ॥१॥ उद्दण्ड-वादि-वेतण्ड-गण्ड-मण्डल-दण्डनः ।, जीयात्समन्तभद्रोऽसौ जिताऽभद्र-ततिः सदा॥२॥
-अनुवादक
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