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प्रस्तावना
अनुवाद उन्होंने मेरी प्रेरणाको पाकर उसे मान देते हुए बड़े ही उदार एवं सेवाभावसे प्रस्तुत किया है अतः इसके लिये मैं उन. का बहुत आभारी हूँ ! अनुवाद कैसा रहा, इसके बतलानेकी यहां जरूरत नहीं, विज्ञ पाठक स्वयं ही उसे पढ़ते समय समझ सकते हैं। हाँ, अनुवादकजीने अपने दो शब्दों में जो यह प्रकट किया है कि 'जिस रूपमें इसे जनताके समक्ष रखना चाहता था उस रूपमें साधनाभावके कारण नहीं रख सका हूँ' वह भनेक अंशोंमें ठीक जरूर है फिर भी यह अनुवाद पूर्व प्रकाशित अनुवादसे बहुत अच्छा रहा है । इसमें चित्रालंकारोंकी अच्छी चर्चा की गई है और विषयके स्पष्टीकरणादिकी दृष्टिसे दूसरी भी अनेक अच्छी बातोंका समावेश हुआ है। संशोधनका भी कितना ही कार्य अनुवादकजीके द्वारा हुआ है परन्तु उसका अधि कांश श्रेय देहली-धर्मपुराके नया मन्दिरकी उस हस्तलिखित प्रतिको प्राप्त है जिस परसे मैंने बहुत वर्ष पहले अपनी प्रतिमें मिलानके नोट कर रक्खे थे और जिनके आधारपर अनेक ऋटित पाठों तथा दूसरे संशोधनोंको टीकामें छपते समय स्थान दिया गया है। साथमें पद्यानुक्रमकी भी योजना की गई है और चित्रालंकारोंको समझने के लिये परिशिष्ट में कुछ सूच. नाएँ भी कर दी गई हैं। इस तरह ग्रन्थके प्रस्तुत संस्करणको उपयोगी बनानेकी यथासाध्य चेष्टा की गई है। आशा है पाठक इससे जरूर उपकृत होंगे। दरियागंज, देहली
जुगलकिशोर मुख्तार ता० २१ जुलाई १९५०
जुगा
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