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स्तुतिविद्या.
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(१२) इष्टपादवलय-प्रथमचतुर्थसप्तमवलय काक्षर चक्रवृत्तम् नष्टाज्ञान मलोन शासनगुरो नम्र जनं पानिन नष्टंग्लान सुमान पावन रिपूनप्यालुनन्भासन । नत्येकेन रुजोन सज्जनपते नन्दन्ननन्तावन नन्दन्हानविहीनधामनयनो नः स्तात्पुनन्सज्जिन ॥११॥
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इस चक्रवृत्तके गर्भ में जो अक्षर है वही छहों आरोंके प्रथम, चतुर्थ और सप्तम वलयमें भी स्थित है अतः १६ वार लिखा जाकर २८ वार पढ़ा जाता है। ११२ वाँ पद्य भी ऐसा ही है।
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