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परिशिष्ट (१३) कवि-काव्य नामगर्म चामृतम् गत्वैकस्तुतमेव वासमधुना तं येच्युतं स्वीशते यन्नत्यति सुशर्म पूर्णमधिका शान्ति वजित्वाध्वना । यद्भक्त्या शमिताकृशाधमरुजं तिष्ठेज्जनः स्वालये ये सद्भोगकदायतीव यजते ते मे जिनाः सुश्रिये ॥११६॥
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इस चक्रवृत्तके बाहरसे ७वें वलयमें 'शान्तिवर्मकृतं' और चौथे वलयमें 'जिनस्तुतिशतं' पदों की उपलब्धि होती है, जो कवि
और काव्यके नामको लिये हुए हैं। कवि और काव्यके नाम विना इस प्रकारके दूसरे चक्रवृत्त ११०, ११३, ११४, ११५२० के हैं।
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