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परिशिष्ट
(११) अनुलोम-प्रतिलोम-श्लोकयुगलम् रक्ष माक्षर वामेश शमी चारुरुचानतः । भो विभोनशनाजोरुनम्रन विजरामय ॥८६॥
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इस कोष्ठकमें स्थित श्लोकको उलटा पढ़नेसे नीचे लिखा ८७ वां श्लोक बन जाता है :
यमराज विनम्रन रुजोनाशन भो विभो । तनु चारुरुचामीश शमेवारक्ष माक्षर ॥८७॥
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इस कोष्ठकमें स्थित श्लोकको उलटा पढ़नेसे पूर्वका ८६ वाँ श्लोक बन जाता है। इसीसे श्लोकका यह जाड़ा अनुलोम-प्रतिलोम कहलाता है।
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