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अभिषिक्तः सुरैर्लोकैस्त्रिभिर्भक्तः परैकैः । वासुपूज्य मयीशेशस्त्वं सुपूज्यः कीदृशः ॥ ४८ ॥
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(६) अनन्तरपाद-मुरजबन्धः
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इस चित्र में श्लोकका एक चरण अपने उत्तरवर्ती चरणके साथ मुरजबन्धको लिये हुए है। ऐसे दूसरे श्लोक नं० ६४, ६६, १०० पर स्थित हैं ।
: ७) यथेष्टका चरान्तरित - मुरजबन्धः
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क्रमतामक्रमं क्षेमं धीमतामर्यमश्रमम् । श्रीमद्विमलमर्चेमं वामकामं नम क्षमम् ॥ ५० ॥
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