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समन्तभद्र-भारती
अर्थ- प्रमओ ! यद्यपि आप समस्त परिग्रह और सम पृथिवीको छोड़कर दीक्षित हो गये थे-नग्न दिगम्बर हो जङ्गा में जाकर तपस्या करने लगे थे-तथापि आपने तीनों लोकों अनुशासित किया था-लोकत्रयके समस्त प्राणी आपके उप दिष्ट मार्ग पर चलते थे । इसके सिवाय आपने अशान्ति कारणस्वरूप लोभको भी जीत लिया था फिर भी आप लक्ष्मीवा और विद्यावानोंमें ईश्वर गिने जाते हैं।
भावार्थ-यहां आचार्यने अपि' शब्दसे विरोध प्रकट किया है। लोकमें देखाजाता है कि जो पृथिवीका मालिक होता है-धनधान्य का स्वामी होता है-और सेना वगैरह अपने पास रखता है वह कुछ मनुष्योंपर-अपने आश्रित देशमें रहनेवाले लोगोंपरशासनकर पाता है; परन्तु आपने शासन करनेके सब साधनों छोड़ देनेपर भी कुछ नहीं किन्तु तीनों लोकोंके लोगोंपर शास किया है यह विरुद्ध बात है। यहां शासनका अर्थ मोक्षमार्गक उपदेश लेनेपर विरोधका परिहार होजाता है। इसी प्रकार जे लोभ और तृष्णासे सहित होता है वही धनधान्यादिक लक्ष्मीक अपने पास रखता है परन्तु आप लोभको जीतकर भी श्रीमान्लक्ष्मीवानोंके ईश्वर-बने रहे यह विरुद्ध बात है,परन्तु श्रीमानका अर्थ अनन्तचतुष्टयरूप लक्ष्मोसे सहित लेनेपर विरोधका परित हार हो जाता है ॥ ६॥
(मुरजबन्धः ) केवलाङ्गसमाश्लेषबलाढ्य महिमाधरम् । तव चांगं क्षमाभूषलीलाधाम शमाधरम् ॥६९॥ केवलेति-केवलं केवलज्ञानम् । अङ्ग शरीरम् । केवलमेव अश केवलाङ्ग केवलान समाश्लेषः सम्बन्धः आलिङ्गनं केवलासमाश्लेष
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