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समन्तभन्द्र-भारती अर्थ-हे कल्या-समर्थ ! जहां सब अर्थों-प्रयोजनों सिद्धि-पूर्ति होती है ऐसीसर्वार्थसिद्धि'नामक पृथिवीको पाकर गई जन्म आदि कल्याणकोंसे सहित हो आप स्ववान् -आत्मा ( पक्षमें धनवान् ) हुए थे- उत्पन्न हुए थे तथा इसके का आपने अनन्तचतुष्टयरूप अपूर्व अर्थकी सिद्धिसे सहित होने भी विहार किया था। (हे भगवन् ! इन सब बातोंसे स्पष्ट कि 'परार्था हि सतां चेष्टा-सत्पुरुषोंकी समस्त चेष्टाए पसे कारके लिये ही होती हैं)।
भावार्थ-जो पुरुष ऐसे स्थानको पा चुका हो जहां उस सब मनोरथोंकी पूर्ति होती हो, अनेक कल्याण अथवा मंगला सहित हो, स्व-धन भी उसके पास पर्याप्त हो तथा इसके सा अनोखे २ पदार्थों की प्राप्ति भी सदा होती रहती हो। सारांशतः हर एक तरहसे सुखी हो वह मनुष्य फिर भी यदि जहां तो भ्रमणकर उपदेश आदि देनेकी चेष्टाएँ करता हो तो उसी उसका निजी प्रयोजन कुछ भी नहीं रहता। उसकी समझे चेष्टाएँ परोपकारके लिये ही रहती हैं। प्रकृतमें-भगवा धर्मनाथ भी पूर्वमें तपस्या करके सर्वार्थसिद्धि विमानको प्राप्त थे। वहांसे चयकर जब वे पृथिवीपर श्रानेको उद्यत हुएवं देवोंने गर्भ-जन्म कल्याणक किये। गर्भमें आनेके छह मा पहले से-पन्द्रह माह तक-प्रतिदिन साढ़े दश करोड़ रत्नोंव वर्षा की। इसके बाद जब ये दीक्षित हुए तब देवोंने तपःकल्या एक किया और जब इन्हें अनन्त ज्ञान अनन्त दर्शन अनन्तसुर और अनन्त वीर्यरूप अपूर्व अर्थकी प्राप्ति हुई तब भी देवा ज्ञानकल्याणकका उत्सव किया-फलतः भगवान् धर्मनाथ
भगवान् धर्मनाथ सर्वार्थसिद्धि विमानसे चय कर गर्भ में अप तीर्ण हुए थे। -धर्मशर्माभ्युदय ।
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