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६. तत्त्वार्थ
१. सात तथ्य, २. तत्त्व, ३. तत्त्वार्थ।
१. सात तथ्य-किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने से पहले श्रद्धा का महत्त्व दर्शाया जा चुका है, परन्तु श्रद्धा किस बात की की जाय यह नहीं बताया गया। कोई पदार्थ तैयार करने के लिये एक कारखाना लगाने से पहले स्वाभाविक रीति से हमारे मन में तथा एक वैज्ञानिक के मन में सात प्रश्न उठते हैं। वे सात बातें ही किसी कार्य की सफलता के लिये यथार्थत: जानने व श्रद्धा करने योग्य हैं। क्योंकि उनके जाने व श्रद्धा किये बिना वह कार्य प्रारम्भ ही नहीं किया जा सकेगा। यदि उन सात बातों में से किसी एक दो बातों मात्र का ज्ञान व श्रद्धान रखकर अन्य बातों की परवाह न करके कार्य प्रारम्भ कर दिया जाय, तो अन्धवत् ही इधर-उधर हाथ पाँव मारने पड़ेंगे, और फल निकलेगा निष्फल पुरुषार्थ या पूंजी का विनाश । दृष्टान्तर से यह बात स्पष्ट हो सकेगी।
_वे सात बातें निम्न प्रकार हैं.-१. मूल पदार्थ (रॉ मैटीरियल) क्या है ? २. उसके सम्पर्क में आने वाले अन्य पदार्थ (इम्पोरिटीज) क्या हैं? ३. मिश्रण का कारण क्या है ? ४. पदार्थ का मिश्रित स्वरूप क्या है ? ५. मिश्रण के प्रति सावधानी का उपाय । ६. मिश्रित अन्य पदार्थों के शोधन का उपाय । ७. शुद्ध पदार्थ का स्वरूप क्या है; देखिये एक डेयरीफार्म लगाना इष्ट है, तो ये सात बातें जाननी पड़ेंगी। १. मूल पदार्थ (दूध) क्या है। २. इसके साथ रहने वाले 'पानी' 'बैक्टेरिया' आदि (सूक्ष्म जन्तु) क्या हैं । ३. बैक्टेरिया की उत्पत्ति के कारण क्या हैं । ४. जल व बैक्टेरिया से मिश्रित दध का स्वरूप क्या है। ५.बैक्टेरिया की नवीन उत्पत्ति रोकने का उपाय। ६.पर्व बैक्टेरिया के विनाश का तथा दुग्ध शोधन का उपाय । ७. शुद्ध दूध (प्योर मिल्क) का स्वरूप क्या है । इसी प्रकार किसी रोग का प्रतिकार इष्ट है तो ये सात बातें जाननी व श्रद्धा करनी पडेंगी। १.मैं नीरोग हैं. २. वर्तमान में रोगी हँ, ३. रोग का कारण अपथ्य सेवन, ४. रोग का निदान, ५. अपथ्य सेवन का निषेध, ६. योग्य औषधि, ७. नीरोगी अवस्था का स्वरूप।
अब आप ही विचारिये कि क्या इन सात बातों के ज्ञान व श्रद्धान बिना कारखाना या डेयरीफार्म लगाना या रोग का दूर किया जाना सम्भव है । और यदि इन सात बातों में से किसी एक दो मात्र बातों के ज्ञान व श्रद्धान के आधार पर कार्य प्रारम्भ करने का दुःसाहस भी कर लिया तो क्या फल होगा। लाभ की बजाय हानि । बैक्टेरिया की उत्पत्ति व उसके दूर करने का उपाय न जानने के कारण उसके प्रति सावधानी न रह सकेगी, फलत: दूध सड़ जायेगा। रोग के कारणों अर्थात् अपथ्यका या ठीक औषधि का ज्ञान न होने के कारण अपथ्य-सेवन न छोड़ सकूँगा, तथा गलत औषधि ले लूँगा, फलत: रोग घटने की बजाय बढ़ जायेगा इत्यादि । अत: श्रद्धा की विषयभूत सात बातें जाननी आवश्यक हैं।
यहाँ जीवन का शान्तिरूप कार्य अभीष्ट है । अत: सात बातें जाननी व श्रद्धा करनी योग्य हैं । १. 'मैं', जिसे शान्ति चाहिये, वह क्या है। २. सम्पर्क में आने वाले अन्य पदार्थ क्या हैं । ३. अशान्ति क्यों । ४. अशान्ति क्या है। ५. नवीन अशान्ति को रोकने का उपाय । ६. पूर्व-अशान्ति के कारणों का विनाश कैसे । ७. शान्ति क्या । इन सब बातों
का आगम में सात तत्त्व कहकर निर्देश किया गया है। इन सातों तत्त्वों के नाम हैं-जीव, अजीव, आस्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा व मोक्ष । इन सबका विस्तृत स्वरूप आगे चलेगा, क्योंकि उनके विस्तार का ज्ञान हुये बिना श्रद्धा किस पर करेंगे। नाममात्र जानने से तो काम चलता नहीं। नाम तो भले कछ और रख लीजिये, पर शान्ति-पथ में उपयोगी इन उपरोक्त बातों का स्वरूप जानना अत्यावश्यक है । ज्ञानी जनों ने कहीं भी अन्धविश्वास करने को नहीं कहा है । आगम,
अनुभव इन तीनों से परीक्षा करके ही स्वीकार करने का निर्देश किया है। इन तीनों में भी अनभव प्रधान है जैसा कि कलवाले श्रद्धान के प्रकरण में स्पष्ट कर दिया गया है।
२. तत्त्व इसीलिये यहाँ तथ्य शब्द का प्रयोग न करके तत्त्व शब्द का प्रयोग किया गया है। तत्त्व अर्थात् तत् + त्व। तत्' का अर्थ है 'वह' और 'त्व' का अर्थ 'पना' या स्वभाव; जैसे अग्नि का स्वभाव उष्णत्व, जल का स्वभाव
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