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५. शान्ति मार्ग
१. त्रयात्मक पथ, २. लक्ष्य बिन्दु, ३. श्रद्धा, ४. चारित्र ।
१. त्रयात्मक पथ — स्वतन्त्र रीति से शान्ति की खोज करने की बात है। सहायता लेनी है अन्तर्ध्वनि की, बचना है संस्कार से । इन दोनों विरोधी बातों में विवेक उत्पन्न करने के लिये कुछ विशेष बातें चलनी हैं अब, अर्थात् मूल विषय, शान्ति - पथ, धर्म-मार्ग अथवा मोक्ष मार्ग ।
किसी भी कार्य में प्रवृत्ति करने के क्रम का यदि विश्लेषण करने बैठते हैं तो उसे त्रयात्मक पाते हैं । अर्थात् तीन मुख्य बातों का एक पिंडरूप ही वह प्रवृत्ति होती है । वे तीन अंश है श्रद्धा, ज्ञान व चारित्र । देखिये डाक्टरी के कार्य में प्रवृत्ति का विश्लेषण करके। 'मुझे डाक्टर बनना है', ऐसा लक्ष्यबिन्दु अर्थात् 'मेरे लिये यही हितकर है और कुछ नहीं,' ऐसी दृढ़ श्रद्धा व रुचि रोगनिदान, रोग के कारण, और रोग की औषधि सम्बन्धी ज्ञान; तथा दुकान पर बैठकर रोगियों पर उस ज्ञान का प्रयोगरूप चारित्र । यही तो है डाक्टर की प्रवृत्ति । यदि एक अंग की भी कमी हो, तो विचारिये कि क्या उसका डाक्टरी कर सकना सम्भव है ? लक्ष्यबिन्दु यदि फोटो ग्राफर बनने का हो, या फोटोग्राफरी को ही अपने लिये हितकर समझता हो और उसी की रुचि रखता हो, तो क्या सम्भव है कि वह डाक्टरी करे, भले ही डाक्टरी का ज्ञान भी क्यों न हो? और यदि लक्ष्य में तो डाक्टरी करना हो तथा उसको हितकर मानकर उसमें रुचि रखता हो, पर तत्सम्बन्धी ज्ञान न हो, तो क्या चित्त मसोसकर ही न रह जाएगा वह ? और यदि लक्ष्य व रुचि भी हो, तथा डाक्टरी का ज्ञान भी हो, पर दुकान पर बैठे नहीं, या बैठकर रोगियों को देखें नहीं, और पढ़ा करे नाविल तो क्या डाक्टरी कर सकेगा वह ? इसी प्रकार जौहरी की, बज़ाज़ की या किसी और की प्रवृत्ति का भी विश्लेषण करके यही फलितार्थ निकलेगा । प्रत्येक प्रवृत्तित्रयात्मक ही होगी ।
बस इसी प्रकार शान्ति-पथ पर चलने की प्रवृत्ति भी त्रयात्मक ही है । शान्ति का लक्ष्यबिन्दु अर्थात् इस ही को हितकर मानकर, अन्तरंग से इसकी रुचि व श्रद्धा करना, शान्ति सम्बन्धी ज्ञान करना तथा उन क्रिया विशेषों में प्रवृत्ति जिनके करने पर कि उस शान्ति का अनुभव हो, अर्थात् चारित्र करना, जिसका उल्लेख कि आगे किया जाने वाला है ।
२. लक्ष्य बिन्दु - इन श्रद्धान, ज्ञान व चारित्र के सच्चे झूठेपने की परीक्षा लक्ष्यबिन्दु से होती है। डाक्टरी का लक्ष्यबिन्दु रखने वाले के लिये शान्ति-पथ सम्बन्धी श्रद्धा झूठी है। उस लक्ष्यबिन्दु की पूर्ति के लिये शान्ति या शान्तिपथ सम्बन्धी ज्ञान तथा चारित्र झूठा है । और इसी प्रकार शान्ति का लक्ष्य रखने वाले के लिये डाक्टरी सम्बन्धी श्रद्धान, ज्ञान व चारित्र झूठा है। लक्ष्यबिन्दु के अनुकूल ही यह त्रयात्मकता कार्यकारी है। इसलिये शान्ति - पथ की जिज्ञासा रखने वाले भो भव्य ! तनिक अपने अन्दर में उतरकर इस जिज्ञासा व रुचि की परीक्षा तो कर। कहीं ऐसा न हो कि लक्ष्यबिन्दु तो पड़ा रहे धन कमाने या भोग भोगने का और सीखने या सुनने लगे शान्तिपथ सम्बन्धी बातें । यदि ऐसा है तो सुना सुनाया बेकार हो जायेगा। क्योंकि जो बात बताई जायेगी उससे तेरे लक्ष्यबिन्दु की सिद्धि न हो सकेगी। यह मार्ग जो कि बताया जाने वाला है, धन कमाने का नहीं है। इससे कदाचित् धनहानि तो होना सम्भव है पर धनलाभ नहीं । अतः देख ले, दिल कड़ा करना होगा, और उसके लिये बदलना होगा अपना लक्ष्यबिन्दु ।
बिना लक्ष्यबिन्दु बनाये चला किस ओर और चला जायेगा किस ओर, यह कौन जाने ? लक्ष्य-रहित व्यक्ति वनों में भटकने के अतिरिक्त और करेगा ही क्या ? यद्यपि पहले भी बता दिया गया है, परन्तु एक विस्तृत विषय चालू करने से पहले उसको पुन: याद दिला देना आवश्यक है कि वह विस्तृत कथन केवल लक्ष्य-बिन्दु को आधार बनाकर चलेगा । पद-पद पर, वाक्य वाक्य में उस ही की ओर संकेत कराया जायेगा। एक क्षण को भी उसे भूलना न होगा, क्योंकि उसे भूल जाने पर कथन का रहस्य समझ में न आ सकेगा। वह सब विस्तार कुछ मनघड़ंत सा, कुछ साम्प्रदायिक सा दिखाई देने लगेगा। वह लक्ष्यबिन्दु है 'शान्ति' । वह शांति जिसके प्रकट हो जाने पर अन्तर से उठने
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