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________________ ५. संसार वृक्ष १८ २. धर्म का प्रयोजन ऊपर वह देख, सफेद व काले दो चूहे तेरी इस डाल को काट रहे हैं । नीचे देख वे अजगर मुंह बाये तुझे ललचाई- ललचाई दृष्टि से ताक रहे हैं। इस शरीर को देख जिसपर चिपटी हुई मधु मक्षिकायें तुझे चूंट-घूंट कर खा रही हैं। इतना होने पर तू प्रसन्न है । यह बड़ा आश्चर्य है। आंख खोल, तेरी दशा बड़ी दयनीय है। एक क्षण भी विलम्ब करने को अवकाश नहीं । डाली कटने वाली है। तू नीचे गिरकर निःसन्देह उन अजगरों का ग्रास बन जायेगा । उस समय कोई भी तेरी रक्षा करने को समर्थ न होगा । अभी भी अवसर है । आ मेरा हाथ पकड़ और धीरे से नीचे उतर आ । यह हाथी मेरे सामने तुझे कुछ नहीं कहेगा । इस समय मैं तेरी रक्षा कर सकता हूं । सावधान हो, जल्दी कर ।" संसारी ज‍ Jain Education International संसार वृक्ष परन्तु पथिक को कैसे स्पर्श करें वे मधुर वचन । मधुबिन्दु के मधुराभास में उसे अवकाश ही कहाँ है यह सब कुछ विचारने का ? “बस गुरुदेव, एक बिन्दु और, वह आ रहा है, उसे लेकर चलता हूं अभी आपके साथ ।” बिन्दु गिर चुका । "चलो भय्या चलो,” पुनः गुरुजी की शान्त ध्वनि आकाश में गूंजी, दिशाओं से टकराई और खाली ही गुरुजी के पास लौट आई । “बस एक बूंद और, अभी चलता हूं, ” इस उत्तर के अतिरिक्त और कुछ न था पथिक के पास । तीसरी बार पुनः गुरुदेव का करुणापूर्ण हाथ बढ़ा। अब की बार वे चाहते थे कि इच्छा न होने पर भी उस पथिक को कौली भरकर वहाँ से उतार लें । परन्तु पथिक को यह सब स्वीकार ही कब था ? यहाँ तो मिलता है मधुबिन्दु और शान्तिमूर्ति इन गुरुदेव के पास है भूख व प्यास, गर्मी व सर्दी, तथा अन्य अनेकों संकट कौन मूर्ख जाए इनके साथ ? लात मारकर गुरुदेव का हाथ झटक दिया उसने और क्रुद्ध होकर बोला, “जाओ अपना काम करो, मेरे आनन्द में विघ्न मत डालो ।” गुरुदेव चले गये, डाली कटी और मधुबिन्दु की मस्ती को हृदय में लिये, अजगर के मुँह में जाकर अपनी 200 Aa सद्गुरू का विमान For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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