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२८. भोजन-शुद्धि
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१२. समन्वय
जलते हुए भाप के फव्वारों से उबाला जा रहा है । जानता है किस लिए ? फूले हुए इसके नरम-नरम चमड़े से तेरे लिए हैंड-बैग तैयार की जायेगी। देख वह बेचारी किस प्रकार तड़प रही है। अरे अरे ! यह क्या ? बस प्रभो बस और न दिखा वह देखो ऊपर से लोहे के तीखे काण्टों का यह फंदा नीचे उतरा, उबले हुए उस जीवित चमड़े को उसके शरीर पर से उधेड़कर अपने साथ ले ऊपर चढ़ गया और जीवित गाय का लोथड़ा तड़फता रह गया। इधर देख 'फर' से बना मुलायम कोट, तथा कम्बल । क्या कुछ सुनाई देता है तुझे इसमें ? क्यों सुनाई दे तेरे कानों में स्वार्थ के डट्टे लगे हैं। सुन इसमें छिपा हुआ सैकड़ों बेज़बान हृदयों का करुण क्रंदन। छोटी-छोटी सैकड़ों लोमड़ियों ने बलिदान दिया है अपने जीवनों का, तेरे इस एक कोट या एक कम्बल को बनाने के लिए। कहाँ तक कहूँ, कलेजा दहल रहा है। जिस एक-एक वस्तु में मुझे चीख पुकार सुनाई दे रही है, आश्चर्य है कि तू उनका सुख-पूर्वक उपभोग करके आनन्द मना रहा है।
११. दूध दही की भक्ष्यता-आज दूध व दही के सम्बन्ध में भी एक संशय की ध्वनि चारों ओर से आती सुनाई दे रही है, जो इनहें अण्डे के समान बता रही है और उसी प्रकार सर्वथा अभक्ष्य । अत: यह विषय भी कुछ विचारनीय है। नि:सन्देह दूध माँस-पेशियों में से रिस-रिसकर नसों के मार्ग से बाहर आता है, परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि वह माँस या माँस के समकक्ष है । विष्टा में से उत्पन्न होने मात्र से अन्न को विष्टा या विष्टा के समकक्ष नहीं कहा जा सकता । दूसरी बात यह भी है दूध में पाये जाने वलो बैक्टेरिया त्रस-जातीय नहीं वनस्पतीय-जातीय (Plant Life) हैं। यह मैं अपनी तरफ से कह रहा हूँ ऐसा नहीं है, सूक्ष्म प्राणी-विज्ञान (Biology Science) ऐसा कहता है । वे भी संख्यात मात्र ही होते हैं असंख्यात नहीं । इसलिए अण्डा तामसिक है और दूध सात्त्विक । दही जमाने के लिए यद्यपि जान बूझकर दूध में जामन के द्वारा बैक्टेरिया प्रवेश कराये जाते हैं और उसमें उनकी सन्तान-वृद्धि कराई जाती है; परन्तु फिर भी वह भक्ष्य है, क्योंकि उनकी संख्या वहाँ संख्याते मात्र को उल्लंघन कर नहीं पाती। फिर भी 'दूध की अपेक्षा दही में बैक्टेरिया अधिक होते हैं' यह सत्य है और इसलिए दूध की अपेक्षा दही त्याज्य है। परन्तु घी बनाने के लिए दही जमाना आवश्यक है इसलिए उसका ग्रहण किया गया है । आजकल मशीन के द्वारा दही जमाये बिना ही क्रीम बनाकर घी निकाला जाए तो दही-वाले घी की अपेक्षा अधिक शुद्ध है, परन्तु उसकी मर्यादा कम होती है, क्योंकि दो महीने के पीछे ही उसमें विशेष प्रकार की गन्ध आने लगती है, अत: उस घी को अधिक समय तक रखना योग्य नहीं है।
दूध बछड़े का भाग होने के कारण अग्राह्य हो ऐसा भी नहीं है, या उसमें चोरी का दूषण आता हो सो भी नहीं है; क्योंकि पहली बात तो यह है कि सारा का सारा दूध बछड़ा पी नहीं सकता, यदि पीवे तो पेट अफर जावे। दूसरी बात यह है कि जब तक दाँत नहीं निकलते तब तक तो अवश्य दध उसका भाग है पर दाँत निकलने
ने क्योंकि तब उसे भूसा भी साथ-साथ दिया जाता है। दाँत प्राकृतिक चिन्ह है इस बात का कि उसे अब भूसे आदि की आवश्यकता पड़ गई है। इसलिए जितना अन्न या भूसा उसे दे रहे हैं उतना दूध आप ले लें तो चोरी का दोष नहीं लग सकेगा। आप मुफ्त में दूध लेते हों सो भी बात नहीं हैं क्योंकि आप गाय व उसकी सन्तान को सुरक्षा देते हैं, उसकी आवश्यकताओं का भार अपने सर पर लेते हैं, इसके बदले में गाय अपना सर्वस्व आपको अर्पण कर रही है, अपना दूध प्रसन्नता पूर्वक आपको देना स्वीकार कर रही है। इस प्रकार गाय का दूध लेने में चोरी नहीं है, पर इतना विवेक अवश्य रखना चाहिए कि बछड़े को पेटभर भोजन अवश्य दिया जाए तथा जितनी उसे आवश्यकता है उतना दूध भी । दाँत निकलने से पहले आधा और पीछे चौथाई दूध बछड़े को दिया जाना पर्याप्त है।
१२. समन्वय-जीव-हिंसा के सम्बन्ध में विचारने से तो वास्तव में सर्व ही पदार्थ अभक्ष्य हैं, क्योंकि कोई भी पदार्थ सर्वथा बैक्टिरिया-रहित नहीं होता । सैद्धान्तिक रूप से देखने पर यद्यपि वनस्पति या दूध आदि कुछ पदार्थ ऐसे हैं जिनमें पहले से बैक्टिरिया नहीं होते, पर क्योंकि वातावरण की शत-प्रतिशत शुद्धि असम्भव होने के कारण वहाँ से वे तुरन्त प्रवेश पा जाते हैं इसीलिए सर्व ही पदार्थों को व्यवहार में बैक्टेरिया-सहित कहा गया है । इसलिए किसी की शक्ति आज्ञा दे और वह भोजन मात्र का ही त्याग करके जीवन चला सके तथा साधनाकर सके तो उत्तम है। परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है, भोजन तो करना ही होगा। अब रही ग्राह्य और अग्राह्य की बात, सो व्यक्ति-विशेष की शक्ति पर
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