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________________ २८. भोजन-शुद्धि १९७ १०. चर्म निषेध कुछ का मत है कि “भले ही माँस को त्रसजीव (Animal Life) की हिंसा के कारण अभक्ष्य कह लें पर अण्डा ऐसा नहीं है। अण्डे दो प्रकार के होते हैं—एक प्राण सहित और एक प्राण रहित अर्थात् एक वह जिसमें से बच्चा निकल सकता है और एक वह जिसमें से बच्चा नहीं निकलता। प्राण-रहित अण्डा तो भक्ष्य मानना ही चाहिए पर प्राण-सहित भी भक्ष्य ही है क्योंकि उसमें भी प्राण बहुत पीछे से आते हैं, पहले से विद्यमान नहीं होते। पहले तो केवल कुछ पीला-पीला पानी सा ही होता है।" भाई ! तनिक विवेक से काम ले, जिह्वा के वश में होकर ऐसी अयोग्य बात मत कर । आज इस विज्ञान के युग में तू ऐसा कह रहा है, आश्चर्य है । सूक्ष्मदर्शी यन्त्र (Microscope) में दोनों ही जाति के अण्डों का वह पीला सा पानी क्या देखा है कभी? यदि नहीं तो एक बार देखने का प्रयत्न कर, या मुझ पर विश्वास कर । वह पीला-पीला दीखने वाला पानी वास्तव में त्रस जीवों (Animal Life) के पुञ्ज के अतिरिक्त और कुछ नहीं है । भले ही इन चक्षुओं से दिखाई न दे पर यन्त्र में वे भागते-दौड़ते तथा कृमि-कृमि करते स्पष्ट दिखाई देते हैं। एक दो नहीं होते असंख्यात (Countless) होते हैं वे । अण्ड़े में प्राणी पीछे से आता हो सो भी बात नहीं है, क्योंकि यदि ऐसा होता तो अण्डा कभी बड़ा न हो पाता । तात्पर्य यह है कि हिंसा की दृष्टि से माँस मछली तथा अण्डे में कोई मौलिक भेद नहीं है। माँस, मछली व अण्डे खाना तो दूर, इन्हें छूना भी योग्य नहीं, इनकी ओर देखना भी योग्य नहीं। शारीरिक स्वास्थ्य के लिये पूर्वोक्त भक्ष्य पदार्थों में अर्थात् वनस्पति व दूध में तेरे लिए प्रकृति ने सर्व ही प्रधान तत्त्व अर्थात् विटामिन प्रदान किये हैं। 'माँस अधिक बल वर्धक है' इस कल्पना को छोड़ दे क्योंकि दोनों जाति के पशुओं में उत्कृष्ट बलधारी देखे जाते हैं । माँसाहारी पशुओं में सिंह और शाकाहारी पशुओं में हाथी, ये दोनों समान बलधारी हैं। अन्तर है तो इतना ही कि सिंह के बल का प्रयोग होता है केवल हिंसा की दिशा में और हाथी के बल का प्रयोग होता है देश व देश-वासियों के उपयोगी कार्यों में, सिंह क्रूर है और हाथी सौम्य, सिंह भय का कारण है और हाथी प्यार का। बता इनमें से किसकी प्रकृति भाती है तुझे, सिंह की या हाथी की ? यदि हाथीवत् सौम्य बनना चाहता है तो शाकाहारी बन माँसाहारी नहीं । माँस में मछली अण्डा सम्मिलित है, यह नहीं भूलना चाहिए क्योंकि शाकाहारी पशु माँस के साथ मछली व अण्डा भी नहीं खाते हैं। मनुष्य के लिए शाकाहार ही बलवर्धक और सौम्यतावर्धक है।। अत:भो मानव ! प्रतिज्ञा कर, मेरे लिए नहीं अपने हित के लिए, अपनी संतान के हित के लिए, अपने देश के हित जसे माँस. मछली व अण्डा तथा अन्य भी इसी प्रकार के पदार्थों की ओर आँख उठाकर नहीं देखेगा, भले ही प्राण क्यों न जायें । बल-वद्धि के लिए तथा रोग-शमन के लिए भी कभी इनका ग्रहण न कर क्योंकि शरीर ही सर्वस्व नहीं है, विवेक का भी कुछ मूल्य है, दया का भी जीवन में कोई स्थान है। मनुज प्रकृति से शाकाहारी, माँस उसे अनुकूल नहीं है। पशु भी मानव जैसे प्राणी, वे मेवा फल फूल नहीं हैं। वे जीते हैं अपने श्रम पर, होती उनके नहीं दुकानें । मोती देते उन्हें न सागर. हीरे देती उन्हें न खाने । नहीं उन्हें है आय कहीं से, और न उनके कोष कहीं हैं। नहीं कहीं के 'बैंकर' बकरे, नहीं 'क्लर्क' खरगोश कहीं हैं। स्वर्णाभरण न मिलते उनको, मिलते उन्हें दुकूल नहीं हैं। अत: दुखी को और सताना, मानव के अनुकूल नहीं है। १०. चर्म निषेध-इतना ही नहीं, इधर आ और भी कुछ दिखाता हूँ। देख सामने खड़ी इस गाय को । किस बेदर्दी से छाडियों द्वारा पीटा जा रहा है इसे ? जानता है क्यों ? इसके चमडे को नरम बनाने के लिए ताकि सुन्दर क्रोम के रूप में तेरे पाँव की शोभा बढ़ाए। देख इस ओर, उस गाय का पेट चीरकर उसके गर्भ में से उसके जीवित बालक को निकाला जा रहा है। जानता है क्यों ? इस बालक के नरम-नरम चमड़े से तेरे लिए मनी बैग बनाई जायेगी। देख इस ओर, कितना राक्षसीय व्यवहार हो रहा है इस बेज़बान गाय के साथ । जीवित ही इसके शरीर को के लिा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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