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२८. भोजन-शुद्धि
८. मांस निषेध _ "अरे विधाता ! क्या कोई नहीं है यहाँ मेरी सुनने वाला? क्या तू भी सो गया है ? लोग कहते हैं कि तू सर्वत्र है, लोग कहते हैं कि तू सबका प्रति पालक है, पर कहाँ है तू, कहाँ गई तेरी प्रतिपालकता? अरे मानव ! तेरे बच्चे से कितना भी बड़ा अपराध हो जाये, तब तो तू बड़े-बड़े न्यायालयों में जाकर उसे छुड़वा लेता है, पर मेरी ओर नहीं देखता । बता तो सही कि क्या अपराध किया है मैंने जिसका दण्ड कि मुझे यह मिल रहा है ? आज मेरे बच्चों का मेरी आँखों के सामने वध किया जायेगा और फिर..... ? निर अपराधी पर इतना बड़ा जुल्म होता हुआ तू किन आँखों से देख रहा है ? मैं तो मानती हूँ कि तू अन्धा है।"
“अरे मानव ! मैं गिड़गिड़ाती हूं, मिन्नत करती हूं, तू मेरे बच्चों को छोड़ दे । उनके मुख से निकली हुई 'माँ' की पुकार मैं कैसे सुनूं ? अरे बेटा ! जिस 'माँ' को तू पुकार रहा है वह स्वयं दुष्टों के हाथ में पड़ी है । जहाँ रक्षक ही भक्षक है वहाँ पुकार किसको सुनायें, बाड़ ही खेत को खाने लगे तो खेत की रक्षा कौन करे? राजा तो ईश्वर का प्रतिनिधि समझा जाता है पर स्वार्थ के गहन अन्धकार में आज वह भी अपना कर्त्तव्य भूल गया। किससे करें रक्षा की प्रार्थना, किसके द्वार पर करें न्याय की दुहाई ?” __हरिणी का रुदन देखकर राजा सुगुप्तगीन ने जीवन पर्यन्त शिकार खेलना छोड़ दिया। उसके पास तो हृदय था इसीलिये उसे सारे जीवन उस हरिणी की छलछलाई आँखे चारों ओर दिखाई देती रही, मानो उससे पुकार-पुकार कह रही हों कि तू मनुष्यों का ही नहीं हमारा भी राजा है, तू ही अन्याय करेगा तो न्याय किससे कराएंगे? परन्तु बेटा ! आज के मानव के पास हृदय है ही कहाँ ? अत: तेरा चीखना-पुकारना बेकार है। मनुष्य तो मनुष्य, ईश्वर भी गहरी निद्रा में सो गया है आज । चुप रह बेटा चुप रह, मानव की चार अंगुली की जिह्वा के लिये तू चुपचाप अपना बलिदान कर दे, ओर ले मैं भी आ रही हूँ पीछे-पीछे ।"
दया कर ओ मानव दया। तू रक्षक बनकर आया है भक्षक नहीं। दो अंगुली की जिह्वा के लिये मानवीयता को न भूल।
जिनके गले पर तू छुरी चला रहा है वे भी बाल बच्चेदार हैं।
जंगल में विचरण करने वाले, तृण भोजी इन बेज़बान पशु-पक्षियों को जिन अपने निर्दय हाथों से तू गोली का निशाना बनाता है तथा अपने दूध से तेरी सन्तान को पालने वाली गो-माता का कलेजा चीरता है, एक बार उन्हीं हाथों को अपने तथा अपनी सन्तान के कलेजे पर रखकर यदि उसकी धड़कन सुन लेता, तो तुझे पता लगता कि इस दुष्कृत से बाज रहने के लिए वे बराबर तुझे उपदेश दिये जा रहे हैं। . प्रभु का नाम लेने की पवित्र प्रभात-बेला में कोई तो अपने जीवन को पवित्र बना रहा है और कोई लह में हाथ रंगकर उसे धरातल को पहुँचा रहा है; कोई तो अपने बच्चों को गोद में खिला रहा है और कोई बेजबान बच्चों को माता की गोद से छीने जा रहा है; कोई तो अपने बच्चों को चूम-चूमकर अपने हृदय को ठण्डा कर रहा है और कोई तलवार की तीखी धार
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