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________________ २८. भोजन-शुद्धि १९२ ६. मन वचन काय शुद्धि जल को इतना गरम कर लेना चाहिये जिसमें कि हाथ दिया जा सके, बहुत कम गरम करके सन्तोष नहीं करना चाहिये। यदि २४ घण्टे तक काम में लाना हो तो उसे भात-उबाल गरम करना चाहिये । जल को कुएँ से लाते ही तुरन्त उपरोक्त तीनों विकल्पों में से कोई एक विकल्प अवश्य पूरा करना चाहिये, उसे खाली छोड़ना योग्य नहीं। ४. दही जमाने के लिये जामन का व दूध के तापमान का बहुत अधिक ध्यान रखना चाहिये। आग के निकट रखकर दही जमाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये, क्योंकि ऐसा करने से दही फट जाती है तथा खट्टी हो जाती है। गर्मी के दिनों में दही वाला बर्तन बराबर ठण्डे पानी में रखना चाहिये और सर्दी के दिनों में उसे किसी स्वच्छ कपड़े में लपेटकर रखना चाहिये। जामन के सम्बन्ध में बहुत विवेक की आवश्यकता है। जामन मीठी दही का ही होना चाहिये खट्टी का नहीं, क्योंकि खट्टे जामन से दही भी खट्टी हो जायेगी। वह फटा हुआ भी नहीं होना चाहिये । जामन में से दही का पानी (Whey) निचोड़कर निकाल देना चाहिये क्योंकि वह खट्टा होता है । जामन को दो तीन बार स्वच्छ पानी में धो लें तो और भी अच्छा है, क्योंकि ऐसा करने से उसमें से रहा सहा सब खटास निकल जाता है। जामन को धोने के लिये जामन वाले बर्तन में थोड़ा जल डालकर हिला दें, फिर जल को निथारकर निकाल दें । जामन के प्रयोग का सरल उपाय तो यह है कि कच्चे गोले के ऊपरी छिलके की कटोरी को दूध में डालकर दही जमा दें और अगले दिन दही में से उसे निकालकर सुखा दें। अब जब भी जामन देना हो दूध में इस कटोरी को डुबा दें और दही प्रयोग करते समय इसे निकालकर फिर सुखा दें । परन्तु ऐसा करने के लिये यह अवश्य जानना चाहिये कि इस प्रकार एक कटोरी आधा सेर दूध को जमाने के लिये ही पर्याप्त है, अधिक दूध जमाने के लिये इसी हिसाब से अधिक कटोरियाँ डाली जानी चाहियें। नया जामन बनाने के लिये आधी छटांक दूध में थोड़ा जीरा डाल दें, तीन या चार घण्टे के पश्चात् वह जम जायेगा, इसको जामन के रूप में प्रयोग कर सकते हैं । टाटरी या अमचूर आदि से जमाना ठीक नहीं क्योंकि उससे दही फट जाती है। गर्मी में जामन थोड़ा दिया जाता है और सर्दी में अधिक । अनुमान से काम लेना होता है । थोड़ी देर में जमानी इष्ट हो तो जामन अधिक दिया जाता है, और अधिक देर में जमानी इष्ट हो तो कम । ५. घृत-शुद्धि के लिये यह विवेक रखना आवश्यक है कि उपर्युक्त शुद्ध दही को बिलोकर उसमें से निकला मक्खन तुरंत ही आग पर रख देना चाहिये । दो तीन दिन तक रखने का तो प्रश्न ही नहीं, दस मिनट की प्रतीक्षा करनी भी योग्य नहीं, क्योंकि इसमें बैक्टेरिया की उत्पत्ति बड़े वेग से होती है। फिर भी अधिक से अधिक पौन मर्यादा के अन्दर-अन्दर अवश्य गर्म कर लेना योग्य है क्योंकि इससे अधिक काल बीत जाने पर वह अभक्ष्य की कोटि में चला जाता है । इस प्रकार से बने हुये घी को अष्ट पहरा घी कहते हैं, क्योंकि दूध से घी बनने तक केवल ८ पहर या २४ घण्टे ही लगे हैं। ऐसा अष्ट पहरा घी ही शुद्ध है। इसको भी बराबर प्रति-मास उबालकर पुन: पुन: निथारते रहना चाहिये, ताकि बैक्टेरिया का बीज वहाँ उत्पन्न न होने पावे । आप देखेंगे कि प्रत्येक बार कुछ न कुछ छाछ अवश्य निकल जाती है। ६. तेल-शुद्धि के लिये सरसों या तिल आदि को अपने घर पर स्वच्छ जल से धोकर सुखा लें, फिर कोल्हू को अपने स्वच्छ जल से अच्छी प्रकार धुलवाकर उसमें पीड़ दें। इस प्रकार प्राप्त किया गया तेल ही शुद्ध है। ७. खाण्ड-शुद्धि के लिये चाहिये तो यह कि गन्ने का रस निकालने से पहले कोल्हू को धोकर साफ कर लें । रस पड़ने वाला व रस पकाने वाला दोनों बर्तन बाल्टी या कड़ाहा आदि धुले हुये साफ हों। गन्ने को अच्छी तरह झाड़ शोधकर कोल्हू में डालें, हाथ अच्छी तरह धोकर काम करें और खाण्ड खांची के द्वारा न निकालकर मशीन के द्वारा निकालें । परन्तु इस प्रकार से खाण्ड बनाना सबके लिये सम्भव नहीं । सम्भव ही बात अपनाई जा सकती है । इसलिये आज की परिस्थिति में बाजार की खाण्ड (sugar) भी ग्रहण कर ली जा सकती है, परन्तु यह विवेक अवश्य रहना चाहिये कि वह खाण्ड, गुड़ या शक्कर हाइड्रोवाली नहीं होनी चाहिये । बाजार से आयी हुई खाण्ड को घर पर पुन: जल में पकाकर उसकी बुरा कूट लेनी चाहिये। ऐसा करने से उसकी पहली सब अशुद्धि दूर हो जाती हैं। इस शुद्ध खाण्ड को ऐसे डब्बे में रखना चाहिये जिसमें चींटी का प्रवेश न हो सके, शीशे के जार में रखना श्रेयस्कर है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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