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________________ १९१ २८. भोजन-शुद्धि ६. मन वचन काय शुद्धि में सुखा लें। बिना धुले अन्न, मसाले आदि का प्रयोग योग्य नहीं है। चावल व दाल को हाथ की हाथ धोकर रांधा जाता है, इसलिये इनको पहले से धोकर सुखाने की आवश्यकता नहीं। गेहूं आदि को सूख जाने के पश्चात् हाथ की चक्की में पीस लें । पीसने से पहले चक्की को अच्छी तरह झाड़ लें ताकि उसमें कोई क्षुद्र जीव न रह पावे। चक्की पोंछने के लिये तथा चक्की में से आटा निकालने के लिये जो कपड़ा प्रयोग में लाया जावे वह धुला हुआ स्वच्छ होना चाहिये, मैला नहीं। आटा सूर्य के प्रकाश में स्वच्छ वस्त्र पहनकर व हाथों को धो पोंछकर ही पीसना चाहिये । पिसे हुये आटे, मसाले आदि को बन्द डब्बों में और यदि हो सके तो शीशे के जार में रखना चाहिये ताकि बाहर की नमी को वे खेंचने न पावें । नमक को भोजन बनाते समय हाथ की हाथ ही पीसना योग्य है, क्योंकि उसकी मर्यादा बहुत ही अल्प है। मेवा में मुनक्का आदि प्रयोग में लानी हो तो सावधानी पूर्वक उसके बीज निकाल देने चाहियें, क्योंकि बीज को ग्रहण करने में कुछ दोष आता है। पदार्थ रखने के डब्बे ऐसे होने चाहिये जिनमें चींटी आदि का प्रवेश न हो सके। बिना धुले अन्न को शोधकर उसमें कोई ऐसा पदार्थ डालकर रखना चाहिये जिससे कि आगे उसमें जीवराशि उत्पन्न न होने पावे। मिट्टी में पारा मिलाकर उसकी टिकिया बना लें, और प्रत्येक छोटे-बड़े डब्बे में यथायोग्य रूप से उन्हें डाल दें तो इस प्रयोजन की सिद्धि हो जाती है। २. अब लीजिये जल-शुद्धि। जल-शुद्धि में दो बातें आती हैं। एक जल को छानना तथा दूसरी जल में से निकले जीवों की रक्षार्थ जिवानी करना। जल छानने में छलने सम्बन्धी विवेक अत्यन्त आवश्यक है। छलना दस गिरह चौड़ा और सवा गज लम्बा होना चाहिये ताकि दोहरा होकर वह दस गिरह चौकोर बन जाये । छोटा सा कपड़े का कोई टुकड़ा छलना नहीं कहलाता। रुमाल या पहना हुआ कपड़ा, धोती आदि भी छलने के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिये । छलना केवल जल छानने के काम के लिये अलग ही रखना चाहिये। यह मिल के सूत का नहीं होना चाहिये, बल्कि हाथ के कते सूत का ही होना चाहिये, क्योंकि हाथ का कता सूत रोएँ वाला होता है, मिल का नहीं होता । छलना मोटे खद्दर का होना चाहिये, पतले कपड़े का नहीं । खादी भण्डार से इस प्रकार का हाथ का बना मोटा खद्दर उपलब्ध हो सकता है। छलना अत्यन्त स्वच्छ होना चाहिये, मैला नहीं और इसीलिए प्रत्येक तीसरे चौथे दिन उसको साबुन सोड़े से धोना आवश्यक है । छलने को जल छानने के पश्चात् तुरन्त ही सुखाना चाहिये, क्योंकि अधिक देर गीला रहने से उसमें बैक्टेरिया की उत्पत्ति हो जाती है । जिवानी करने में भी इतनी सावधानी अवश्य रखनी चाहिए कि जिवानी का पानी भूमि या कुएँ की दीवार आदि पर न पड़े, बल्कि सीधा कुएँ के भीतर पानी में पड़े। द्धि के सम्बन्ध में आवश्यक तो यह है कि पश को भली प्रकार स्नान कराके दहा जाये ताकि उसके शरीर पर लगे धूल व गोबर आदि से निकलकर बैक्टेरिया दूध में प्रवेश न कर सकें। इसी प्रकार दुहने वाले को भी स्नान करके स्वच्छ वस्त्र पहन लेने चाहिएं,बर्तन भी चमकदार व स्वच्छ मंजा हुआ होना चाहिये, दुहने से पहले हाथ व थन अच्छी तरह धो लेने चाहिएं,ताकि बर्तन कपड़े व हाथों से भी बैक्टेरिया का प्रवेश दूध में न हो सके। दूध निकालते ही बर्तनों को अच्छी प्रकार ढक देना चाहिये, ताकि वायुमण्डल से बैक्टेरिया का प्रवेश दूध में न हो सके। ये सब बातें वास्तव में वही निभा सकता है जिसके अपने घर पर पशु हो, पर आज की विकट परिस्थिति में ये सब बातें पूर्णत: निभाई जानी असम्भव हैं। इसलिये जितनी अधिक से अधिक निभनी शक्य हों उतनी निभानी चाहिए। कम से कम बर्तन अवश्य अपना ही होना चाहिये क्योंकि बाजार वालों के बर्तन स्वच्छ मंजे हुये नहीं होते, मापने का बर्तन भी अपना ही होना चाहिये । दुहने वाले के हाथ व पशु के थन कम से कम अवश्य अपने छने हुये स्वच्छ पानी से धुलवा दिये जाने चाहियें । घर लाकर उसे अवश्य दूसरे बर्तन में छान लेना चाहिये। दूध जल्दी से जल्दी आग पर रख देना चाहिए,ताकि उसमें रहे थोड़े बहुत बैक्टेरिया दूर हो जायें, और उसमें उनकी सन्तान-वृद्धि न होने पावे । जल के सम्बन्ध में तीन विकल्प हैं—यदि छ: घण्टे के अन्दर-अन्दर प्रयोग में लाकर समाप्त कर देना हो तो उसमें छानने के पश्चात् तुरंत ही पीसी हुई लौंग, हरडे, जीरा आदि या अन्य कोई ऐसी औषधि थोड़ी सी डाल देनी चाहिये जिससे कि जल का रंग व गन्ध बदल जाये। मात्र २ या ४ साबुत लौंग डालकर रूढ़ी पूरी करना योग्य नहीं, जल का रंग व गन्ध न बदले तो डालने का कोई लाभ नहीं । यदि १२ घण्टे के अन्दर-अन्दर प्रयोग में ले आना हो तो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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