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२८. भोजन-शुद्धि
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६. मन वचन काय शुद्धि
उपर्युक्त मर्यादायें वास्तव में उस समय में स्थापित की गई थीं जब कि आज के जैसे साधन नहीं थे, आटा आदि पदार्थ मिट्टी के घड़ों में रखे जाते थे, जिनमें से नमी प्रवेश कर जाती थी, पर आज उनकी अपेक्षा कुछ अच्छे साधन उपलब्ध हैं। इसलिये वस्तुत: वायु-शून्य (airtight) डब्बों व कांच के बर्तनों में सूखे पदार्थों को रखकर और रेफ्रीजिरेटर में पके हुये गीले पदार्थों को रखकर यद्यपि वस्तुओं की मर्यादा बढ़ाई जा सकती है, तदपि प्रमाद विषयक दोष से अपनी रक्षा करने के लिये तथा आगमाज्ञा का उल्लंघन न हो जाये इस भय से आगमोक्त मर्यादाओं को स्वीकार करने में ही साधक का हित है।
५. छुआछूत-बैक्टेरिया प्रवेश के प्रमुख द्वार पाँच हैं-१. वायुमण्डल, २. वह कमरा या घर जहाँ कि खाद्य पदार्थ रखा है, ३. बर्तन, ४. वस्त्र, ५. शरीर । वायुमण्डल में सर्वत्र प्राय: बैक्टिरिया का निवास है और गन्दे वायुमण्डल में बहुत अधिक रहते हैं । वायुमण्डल के बैक्टेरिया से पदार्थ की रक्षा करने के लिए यथासम्भव वस्तु को ढ़ककर ही रखना चाहिए, उघड़ा हुआ नहीं। संवारने से पहले छिलके वाली वनस्पति तथा बीनने से पहले सूखा अन्न भले खुला पड़ा रहे, पर इसके पश्चात् नहीं, क्योंकि छिलके वाली वनस्पति या अन्न आदिक प्राकृतिक रूप से छिलके के अन्दर बन्द हैं।
धूल, धूम, गोबर, मल, मूत्र अथवा अन्य भी किसी दुर्गन्धित पदार्थ की सन्निकटता से वायुमण्डल अपवित्र हो जाता है, क्योंकि ये तथा ऐसे सर्व पदार्थ बैक्टेरिया के पुंज हैं उनमें से निकल-निकलकर वे बड़े वेग से वायुमण्डल में तथा दीवारों आदि के छिद्रों में या मसामों (Pores) में प्रवेश पाने तथा पनपने लगते हैं। बर्तनों में भी यदि कहीं मैल लगा रह जाये या ठीक से न मंजने के कारण उनमें चिकनाहट रह जाये तो वहाँ बैक्टेरिया की सन्तान वृद्धि को प्राप्त हो जाती है। जिस बर्तन में खड्डे पड़ गए हैं उस बर्तन में प्राय: बहुत अधिक बैक्टिरिया राशि पाई जाती है । क्योंकि उन खडडों में मैल एकत्रित हुये बिना नहीं रह सकता । चिकने, चमकदार, साफ व बिना खडडों वाले बर्तनों में बैक्टेरिया उत्पन्न नहीं होते परन्तु उनको यदि साफ करके गीले ही रख दिया जाए तो उत्पन्न हो जाते हैं, सूखों में बिल्कुल उत्पन्न नहीं होते। बर्तनों की भाँति वस्त्रों में तथा शरीर में भी समझना । मैले वस्त्रों में या मैले शरीर में वे बहुत वेग से पनप उठते हैं, साफ व सूखे वस्त्रों में उनकी उत्पत्ति नहीं होती। इसलिये किसी भी पदार्थ को बिना अच्छी तरह हाथ धोए छूना योग्य नहीं।
इन पाँचों पदार्थों के निकट-सम्पर्क में आने पर खाद्य-पदार्थ में बैक्टेरिया प्रवेश पा जाते हैं और वहाँ उनकी सन्तानोत्पत्ति बड़े वेग से वृद्धि पाने लगती है, इसलिये ऐसे पदार्थों से छुआ हुआ खाद्य-पदार्थ अपवित्र माना जाता है। इसी कारण वस्त्र व शरीर-शुद्धि में छुआछूत का बहुत विचार रखा जाना योग्य है। वस्त्र व शरीर को धो लेना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि धुलने के पश्चात् उनकी अपवित्र व गन्दी वस्तुओं के तथा अन्य व्यक्तियों के वस्त्रों व शरीर के स्पर्श से रक्षा करना भी अत्यन्त आवश्यक है । वस्त्र आदि धोने का अर्थ यहाँ पानी में से निकालकर सुखा देना मात्र नहीं है, वह तो केवल रूढि है, अच्छी तरह से साबुन या सोडे आदि के प्रयोग द्वारा या सोडे साबुन के पानी में पकाकर या भाप (steam) में पकाकर उसका मैल निकाल लेना तथा बिल्कुल स्वच्छ कर लेना योग्य है । इसे रूढ़ि न समझना, यह एक वैज्ञानिक तथ्य है । डाक्टर लोग भी आप्रेशन रूम में तभी प्रवेश करते हैं जबकि भाप में पका एक लम्बा कोट पहन लें, ताकि सर्व अपवित्र वस्त्र उसके नीचे छिप जायें और वहाँ से बैक्टेरिया निकलकर रोगी के घाव में प्रवेश न कर पायें । यहाँ तक कि मुँह व नाक के आगे भी एक स्वच्छ वस्त्र बांध लेते हैं तथा साबुन से अच्छी तर हाथ धोकर ही औजारों को छूते हैं।
६. मन वचन काय शुद्धि-अन्दर में पवित्र शान्ति का भोग करने के लिये बाह्य में शुद्ध भोजन का ही ग्रहण आवश्यक है। भोजन-शुद्धि के सम्बन्ध में अनेकों बातें सिद्धान्त रूप से पहले प्रकरणों में समझा दी गई हैं। आओ अब उनका प्रयोग अपनी चर्या में करके देखें कि किस रूप में वे हमारी चर्या में हमको सहायता दे सकती हैं।
भोजन शुद्धि के सम्बन्ध में चार बातें मुख्यत: विचारनीय हैं-१. मन-शुद्धि, २. वचन-शुद्धि, ३. काय-शुद्धि, ४. आहार-शुद्धि । इन चार शुद्धियों को मुख से उच्चारण करना तो हम सब जानते हैं, किसी भी त्यागी या सन्यासी को भोजन कराते समय 'मन-शुद्ध, वचन-शुद्ध, काय-शुद्ध, आहार-जल शुद्ध है, ग्रहण कीजिए', इस प्रकार के मन्त्रोच्चारण
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