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२८. भोजन-शुद्धि
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४. मर्यादाकाल
मुख्यत: जल व दूध आदि तरल पदार्थों को यदि आध-घण्टे तक ६३ डिग्री तापमान पर, या ३ मिनट तक ८० डिग्री तापमान पर गर्म कर दिया जाय तो उसमें रहे बैक्टेरिया प्राय: दूर हो जाते हैं। इस प्रक्रिया का नाम पास्चराइजेशन (Pasturisation) है। बड़े-बड़े डेयरी फार्मों में तथा अन्य कारखानों में मशीनों के द्वारा ठीक-ठीक तापमान देने के साधन विद्यमान होने के कारण उनके लिये तो यह सम्भव है, परन्तु एक भारतीय साधारण गृहस्थ के लिये यह सम्भव नहीं कि ठीक-ठीक समय व तापमान दिया जा सके । शक्य कार्य ही किया जाना सम्भव है, इसलिये प्राय: दूध व जल को उबाल लिया जाना चाहिये, परन्तु बराबर कई घण्टों तक उबलते रहने न दिया जाये । दो या तीन उबाल आ चुकने पर अग्नि पर से हटाकर उन्हें ठण्डा करने को रख दिया जाना चाहये, ताकि गरम जाति वाले बैक्टेरिया उसमें उत्पन्न होने न पावें।
कम तापमान उत्पन्न होने वाले नं० १ जाति के बैक्टेरिया से इसकी रक्षा करने के लिये आवश्यक है कि उस उबलते हुये पदार्थ को शीघ्रातिशीघ्र ठण्डा कर दिया जाये। यदि रैफ्रीजैरेटर (Refrigerator) उपलब्ध हो तो उसमें रखकर. नहीं तो ठण्डे जल में रखकर । ऐसा करने से गर्मी के दिनों में भी 24 घण्टों तक दध खड़ा नहीं होता। दही जमाने के लिये भी यदि इस प्रक्रिया को अपनाया जाय तो गर्मी के दिनों में दही बहुत मीठी व कड़ी जमती है, वह पानी नहीं छोड़ती तथा फटती नहीं। परन्तु यह आवश्यक है कि उबालने की क्रिया दूध व जल की प्राप्ति के पश्चात् शीघ्रातिशीघ्र (अधिक से अधिक पौन घण्टे के पूवोक्त मर्यादा काल के अन्दर-अन्दर) करनी चाहिये। क्योंकि मर्यादाकाल बीत जाने पर उन पदार्थों में बैक्टेरिया की सन्तान में वृद्धि होनी प्रारम्भ हो जाती है, अत: तब उबालने का कार्य करने में अधिक हिंसा का प्रसंग आता है।
बैक्टेरिया की उत्पत्ति के लिये चार बातों की आवश्यकता है-वायु, जल, आहार (Nutrient), व तापमान । खाद्य पदार्थों में भी गीले खाद्य पदार्थों में जैसे वनस्पति व पके हुये भोजन में तो चारों चीजों की उपस्थिति होने के कारण उनकी उत्पत्ति सर्वथा रोकी नहीं जा सकती, परन्तु सूखे अन्न, खाण्ड, नमक, घी व तेल आदि में यदि नमी का प्रवेश न होने दिया जाये तो वहाँ उनकी उत्पत्ति रोकी जा सकती है। अन्नादि को धूप में सुखाकर तथा घी, तेल आदि को उबालकर यद्यपि नमी दूर की जा सकती है, परन्तु क्योंकि वायुमण्डल में से मुख्यत: वर्षा ऋतु में ये पदार्थ स्वत: नमी खेंच लेते हैं, इसलिये सुखाने के पश्चात् इन्हें लोहे, धातु या कांच आदि के बन्द बर्तनों में ही रखा जाना योग्य है । बोरी में या मिट्टी के बर्तनों में रखने से इनमें नमी का प्रवेश रोका नहीं जा सकता । डब्बों के ढकने भी बहुत टाइट होने चाहियें क्योंकि ढ़ीले ढकनों में से नमी प्रवेश कर जाती है । ढकनों को उघड़ा छोड़ना भी इस दिशा में अत्यन्त अनिष्ट है।
पके हुये पदार्थों को यद्यपि बैक्टेरिया की उत्पत्ति से सर्वथा सुरक्षित नहीं रखा जा सकता, पर यदि बाहर से बैक्टेरिया इसमें प्रवेश न होने दिया जाये तो बीजारोपण के अभाव के कारण इनको कुछ काल तक अवश्य बैक्टेरिया की उपज से रोका जा सकता है । वस्तुत: अन्न खाण्ड आदि उपर्युक्त सर्व पदार्थों में भी सर्वथा के लिये उनकी उपज को रोक दिया जावे, यह हमारे लिये शक्य नहीं है, क्योंकि वायु व नमी का सर्वथा अभाव करने के या डिब्बों में बन्द कर लेने के साधन हमारे पास नहीं हैं। इसलिये भोजन शुद्धि को बनाए रखने के लिये गुरुओं को अनुमान से काम लेना पड़ता है । भिन्न-भिन्न वस्तुओं में प्राय: कितने काल पश्चात बैक्टेरिया-उत्पत्ति आरम्भ हो जाती है, यह अनुमान करके गुरुओं ने पदार्थों का मर्यादाकाल हमारे लिये निश्चित कर दिया हैं उस काल के पश्चात् बैक्टेरिया की उपज हो जाने के कारण वे भक्ष्य पदार्थ ही अभक्ष्य की कोटि में चले जाते हैं। इसको मर्यादा काल भी कहते हैं। जैसे आटे की मर्यादा सर्दी में ७ दिन, गर्मी में ५ दिन और वर्षा ऋतु में ३ दिन बताई है। इसी प्रकार खाण्ड की मर्यादा सर्दी में एक महीना, गर्मी में १५ दिन, वर्षा ऋतु में एक सप्ताह है। रोटी व पकी हुई दाल की मर्यादा ६ घण्टे, पकी हुई भाजी की मर्यादा १२ घण्टे, तले हुये पदार्थ की मर्यादा २४ घण्टे और इसी प्रकार अन्य सर्व पदार्थों की मर्यादा भी आगम में बताई है, वहाँ से जान लेना। इतने काल के अन्दर ही ये पदार्थ सावधानी पूर्वक प्रयोग में लाये जाने चाहिएँ, इतने काल पश्चात् नहीं।
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