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________________ (xix) उत्तम क्षमा २४१ उत्तम आर्जव २४८ चित्त की शान्ति ही उत्तम क्षमा है। शान्त सरोवर में पड़े चन्द्रबिम्ब की भाँति इसी में तत्त्व प्रकाशित होता है । ज्ञानी बाहर में सोते हुए भी अन्तरंग में सदा जागते हैं। संस्कार सेना उनसे भय खाकर भाग जाती है। लोभ और माया की कुटिल वासनाओं के चक्कर में फंसकर क्यों पतिव्रता शान्ति सुन्दरी को अन्तर्गृह से नीचे धकेल रहा उत्तम शौच २५२ उत्तम सत्य २५६ उत्तम तप उत्तम तप उत्तम तप जिस प्रकार इस नारियल के भीतर उसकी सारभूत गिरी है उसी प्रकार तेरे शरीर के भीतर सत्य स्वरूप चेतन है। आतापन योग्य। वर्षा योग। संयम ही परम तप है। संयम अहिंसा है, संयम सत्य है, संयम विश्वप्रेम है, संयम चित्त विश्रान्ति है और संयम ही परम पद २६३ २६३ २६९ है। उत्तम त्याग २८३ उत्तम आकिंचन्य २८७ उत्तम ब्रह्मचर्य २९१ त्याग में है शान्ति और ग्रहण में है संघर्ष । (किले से निकलती सेना) । ज्यों ही मानस्तम्भ में विराजित समतामूर्ति पर दृष्टि गई, इन्द्रभूति की अन्तर्चेतना जागृत हो गई, अभिमान गलित होकर आकिंचन्य अवस्था को प्राप्त हो गए। पूर्ण ब्रह्मचारी हैं ये, उर्वशी तथा रम्भा सी देव कन्याएं भी जिन्हें विचलित करने को समर्थ नहीं। काल रूपी सिंह से कोई बचाने वाला नहीं। चारों गतियों में जो दुःख तूने भोगे उन्हें याद कर। अकेला ही सब सुख-दुःख भोगता है। -- इससे अधिक अपवित्र क्या है। तनिक चेचक निकल आए तो देख इसकी सुन्दरता तथा स्वच्छता तपसा निर्जराश्च । (आतापन तथा वर्षा योग) ३०. ३२. ३३. अशरण भावना संसार भावना एकत्व भावना अशुचि भावना २९५ २९६ २९७ २९८ निर्जरा भावन २९८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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