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चित्र सूची
चित्र सं० अध्याय
धर्म का प्रयोजन शान्ति
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शान्ति मार्ग जीव तत्त्व
अजीव तत्त्व
नियतिवाद
सम्यग्दर्शन
साधना साधना
१२३ १२६
चित्र विवरण संसार वृक्ष वास्तव में महान हैं ये (ध्यानस्थ योगी) जो सबको तत्त्व दृष्टि से देखते हैं और स्वयं सच्ची शान्ति में निमग्न रहते हैं। उड़ रे पंछी ऊँचे-ऊँचे, आ अपने शिवपुर में। अरे जीव बारह भावनाओं से धर्म नौका की रक्षा कर ले, इसे संसार सागर में डूबने से बचा ले चल भले धीरे-धीरे चल । परन्तु जीव व अजीव तत्त्व का विवेक उत्पन्न करता चल। विवेक जागृत होने पर साधु बन जाएगा तू। समस्त वादों से अतीत आत्मस्वरूप में स्थित भगवचरणों में जाति विरोधी जीवों की मैत्री। सम्यग्दर्शन को प्राप्त जीवात्मा का परमात्मा स्वरूप। अन्त: शून्यं बहिशून्यं, चित्त शून्यं विकल्प मुक्तं । अन्त: पूर्ण बहिपूर्णं, शान्ति पूर्णं हि मोक्ष तत्त्वं ।। षट्लेश्या वृक्ष गुरु देशना को प्राप्त शिष्य साधना द्वारा समस्त विघ्नों को परास्त कर अपने भीतर अपना स्वरूप देख कर आश्चर्य चकित रह गया। शुभ करम जोग सुघाट आया, पार हो दिन जात है। धन्य है आपका वीरत्व, अन्तरंग तथा बहिरंग कोई भी शत्रु जिसे परास्त करने को समर्थ नहीं गुरु देशना को प्राप्त जीव बाह्य तथा आभ्यन्तर जगत् से शून्य केवल चिज्ज्योति, सच्चिदानन्द स्वरूप को प्राप्त कर लेता है। यह है स्वाध्याय का प्रताप 'जैनेन्द्र प्रमाण कोष' । अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधो वैर त्याग: । ' बैक्टेरिया कर्व दया कर ओ मानव दया कर । जिनके गले पर तू छुरी चला रहा है, वे भी बाल बच्चेदार हैं। ये हैं दयालुता के आदर्श भगवान महावीर । अहिंसक का प्यार ही वाण से हत हंस की औषधि बन गया। "रूपातीत शक्लध्यान में स्थित नीरंग, निस्तरंग. शन्य चित्त ध्यानस्थ साधु ।” वीर भामाशाह का आदर्श अपरिग्रह व्रत । यह सब सम्पत्ति मेरी है ही कब विश्व की है, विश्व की रहेगी।
गृहस्थ धर्म गुरु उपासना
१२.८ १५५
गुरु उपासना
१५७
स्वाध्याय अहिंसा भोजन शुद्धि भोजन शुद्धि
१६४ १८० १८७ १९५
भोजन शुद्धि
१९९
साधु धर्म
२२७
अपरिग्रह .
२३५
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