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२७. अहिंसा
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३. विरोधी हिंसा में अहिंसा
से प्राप्त होती है, और उससे तेरी गृहस्थी बिगड़ने की बजाय कुछ अच्छी बनती है। तू ही बता कि यदि व्यंगात्मक या मर्मच्छेदी वचनों के द्वारा तू किसी का हृदय छलनी न करे तो क्या हानि है तेरी? लाभ ही लाभ है। सबके साथ सहज मैत्री व प्रेम प्राप्त हो जाता है। इसी प्रकार मन से किसी का अनिष्ट चिन्तवन न करे तो क्या हानि है तेरी? इन सूक्ष्म हिंसाओं की उपेक्षा करके संयम को केवल कायिक हिंसा के निरोध तक सीमित रखना इसके अर्थ की हिंसा करना है।
३. विरोधी हिंसा में अहिंसा-प्राण-संयम की बात चलती है, उसके अन्तर्गत संकल्पी-हिंसा का पूर्ण त्याग और उद्योगी व आरम्भी हिंसा में भरसक यत्नाचार रखने के लिये कल बताया जा चुका है। अब चलती है विरोधी हिंसा की बात । गृहस्थ में रहते हुये अपनी, कुटुम्ब की, व अपनी सम्पत्ति की रक्षा करना मेरा कर्तव्य है। घर में कोई चोर या डाकू मेरी सम्पत्ति का अपहरण करने के लिये घुस आवे तो मेरा कर्त्तव्य वहाँ से भाग जाना, या चुपके से जो मांगे दे देना नहीं है, ऐसा करना कायरता है। इसके अतिरिक्त मेरे देश पर, उस पर जिसका सीना चीरकर उत्पन्न की गई सम्पत्ति सखपर्वक मैं उपभोग कर रहा हूँ, यदि कोई आक्रमण करने को उद्यत हआ हो तो यह समझकर कि इस विरोधी का मुकाबला करने में अनेकों का लहू बह जायेगा मैं हिंसक बन जाऊँगा, मुँह छिपा लेना कायरता है । अहिंसा या प्राण संयम कायरता का नाम नहीं, अहिंसा वीरों का भूषण है, क्षत्रियों का धर्म है, अतुल बलधारी ही इसका पालन कर सकते हैं । यह अहिंसा की प्रतिष्ठा का ही कोई अचिन्त्य प्रताप है कि सिंह-गाय, बिल्ली-चूहा, सर्प-नेवला आदि जैसे विरोधी जीव भी परस्पर का वैर भूलकर बैठ जाते हैं वीतरागी जनों के चरणों में शान्तचित्त ।
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ये हैं अहिंसा के आदर्श पूर्ण
संयमी जो किसी का विरोध नहीं करते, PA और इसीलिये जिनके चरणों में आकर
Timal अन्य जीव भी वैर विरोध भूल जाते हैं। -aveal अहिंसा प्रतिष्ठायां तत्सन्निधौ
वैरत्याग:"।
अहिंसा का ठीक-ठीक परिचय न होने के कारण ही आज का विश्व अहिंसा को कायरता का प्रतीक कह रहा है, इसी को भारत देश के ह्रास का कारण कह रहा है। परन्तु क्या उसे अब भी विश्वास नहीं हुआ अहिंसा के पराक्रम पर, जब कि एक इसी हथियार के द्वारा मुकाबला किया गया तोपों का, टैंकों का, बमों का, तथा आधुनिक बड़े-बड़े हथियारों का, और जीत हुई इसी के पक्ष की अर्थात् भारत स्वतन्त्र हो गया, बिना रक्त की एक बूंद गिराये। सम्भवत: विश्वास नहीं फिर भी इसके महान पराक्रम पर ।
तो देख और अनेक ढंगों से दिखाता हूँ अहिंसा का पराक्रम । गृहस्थी पर या देश पर उपरोक्त अवसर आ पड़ने पर एक गृहस्थ अहिंसक का कर्तव्य है कि अपनी व अन्य की तथा देश की रक्षा करने के लिये बाजी लगा दे अपनी जान की, भले शत्रु प्रबल हो पर भिड़ जावे उससे । अहिंसक को अपमान के जीवन की अपेक्षा मृत्यु अधिक प्रिय है। मृत्यु उसके लिये बच्चों का खेल है, जैसे कि एक खिलौना लिया और टूट जाने पर दूसरा ले लिया। किस काम आयेगा फिर यह चमड़े का शरीर, यदि आज मेरे सम्मान की रक्षा में इससे कोई सहायता न मिले। इतने दिनों से बराबर इसे पोषता चला आया हूँ आज अवसर आया है इसकी परीक्षा का, मेरी सेवा का मूल्य चुकाने का। और यदि
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