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२३. देव-पूजा
आज
१. आदर्श भिखारी; २. आदर्श दाता; ३. आदर्श देव; ४. आदर्श पूजा; ५. अष्ट द्रव्य पूजा; ६. शंका समाधान (i. देव विषयक; ii. पूजा विषयक; iii. प्रतिमा विषयक; iv. मन्दिर विषयक)
१. आदर्श भिखारी-हे शान्ति-सुधा-सागर ! हमें अपना दास बनाने का सौभाग्य प्रदान कीजिये । ओह ! कैसी अनोखी बात है कि शान्ति का उपासक मैं भीख मांगने पर उतर आया हूँ और भीख भी काहे की, दासत्वकी? परन्तु इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है भाई ! क्योंकि आज मैं वास्तव में हूँ ही भिखारी । भिखारी कौन होता है, यह तो सोच? भिखारी के दो मुख्य लक्षण हैं—पहला यह कि जिसे कुछ इच्छा हो, दूसरा यह कि जिसकी इच्छायें पूर्ण न हो पाती हों या पूर्ण होने की आशा न हो । यदि किसी को इच्छायें न हों या अपनी इच्छाओंको स्वयं पूरा कर लेता हो तो दूसरे के सामने हाथ फैलायेगा ही क्यों ? बस तो आज की दशा में यह दोनों लक्षण मुझ में घटित होते हैं। मुझे शान्ति की इच्छा है और गृहस्थ-जाल में बन्धकर विकल्प-सागर में डूबे हुए मुझे परिश्रम करने पर भी विकल्पों से मुक्ति मिलती प्रतीत नहीं होती। इसलिये इस दशा में रहते हुए शान्ति मिलनी बहुत दुर्लभ लगती है, यहाँ तक कि
इतबद्धिसा.निराशसा होकर यह ही सोचा करता हूँ कि क्या करूं कैसे इन विकल्पों से छट कैसे शान्ति में स्थिति पाऊं । मैं भिखारी अवश्य हूँ, पर अन्य भिखारियों में और मुझ में अन्तर है वे हैं धन व भोगों के भिखारी और मैं हूँ शान्ति का भिखारी । भिखारी बना रहना किसी को अच्छा नहीं लगता और मुझे भी अच्छा नहीं लगता पर क्या करूँ भूखा मरता क्या नहीं करता। जिस प्रकार कदाचित् सौभाग्यवश उन भिखारियों में से किसी एक को यदि किसी प्रकार धन या भोगों की प्राप्ति हो जाय तो वह स्वत: भीख मांगना छोड़ देता है, उसी प्रकार मुझे भी यदि कदाचित् किसी प्रकार शान्ति की प्राप्ति हो जाय तो मैं भी स्वत: भीख मांगना छोड़ दूँगा। और जैसे वह यदि आज ही आपके कहने से या स्वत: भीख मांगना छोड़ दे तो भूखा मर जाय, उसी प्रकार मैं भी यदि आपके कहने से या लज्जा के कारण शान्ति की भीख मांगना छोड़ दूँ तो भूखा मर जाऊँ।।
२. आदर्श-दाता-अब प्रश्न यह उठता है कि भिखारी बनकर घर से निकला कोई भी व्यक्ति किसके पास जाए भीख मांगने ? उत्तर स्पष्ट है कि उसके पास जो कि उसकी अभीष्ट वस्तु का भण्डार हो, तथा जो उदार हो कृपण नहीं। बस तो जिस प्रकार धन के भिखारी जाते हैं, धन के भण्डार तथा दानी धनिकों के पास; धनुष-विद्या के भिखारी जाते हैं, उस विद्या के भण्डार व उदार-हृदय द्रोणाचार्य के पास; आधुनिक विद्या के भिखारी जाते हैं उस विद्या के भण्डार तथा इसे देने में तत्पर स्कूल कालिजों के मास्टरों तथा प्रोफैसरों के पास; वीरता के भिखारी जाते हैं वीरता के भण्डार तथा दयालु महाराणा प्रताप के पास; जूए के भिखारी जाते हैं किसी बड़े जुआरी के पास; उसी प्रकार शान्ति का भिखारी मैं जाऊँगा शान्ति के भण्डार व विश्व-कल्याण में तत्पर किसी भी योग्य व्यक्ति के पास ।
अब देखना यह है कि मेरी कामनाओं की पर्ति करने वाला. मझ भिखारी की झोली भर देने वाला, उपरोक्त लक्षणों को धारण करने वाला, ऐसा कौन व्यक्ति है जिसके पास कि मैं जाऊँ, तथा वह कहाँ रहता है ? चलो खोजें उसे । यह लो राजाकी सवारी आती है। आइये इसी से मांग लें “राजा महाराज की जय हो, इस गरीब की झोली में भी कुछ डाल दो।” “लो दो अशर्फी ।" "पर क्या करूँगा इनका ? मुझे तो शान्ति चाहिये, हो तो दे दीजिये।" "अरे ! इस शान्ति का तो मैं भी भिखारी हूँ। भिखारी भिखारी को क्या देगा?" और इस प्रकार स्कूल का मास्टर, प्रोफ़ैसर, सेठ, सेनापति, जुआरी, क़साई सबसे माँगकर देखो, सब स्वयं भिखारी हैं इस शान्ति के, अत: उनके पास जाना व्यर्थ है।
अब आइये इधर इस द्वार पर जहाँ कि कल्पनाओं के घोड़े पर सवार ये कुछ विशेष प्रकार के भिखारी खड़े भीख मांग रहे हैं। देखें तो अन्दर कौन है और क्या बांट रहा है ? अरे ! ये तो मुरली-मनोहर हैं, मुरली की धुन में तथा भक्त गोपियों के साथ रासलीला में मग्न, अतीव सुन्दर शरीर के धारी, बलवान, नीतिज्ञ, दयालु, सखा तथा अनेक गुणों
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