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२२. गृहस्थ-धर्म
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१. सामान्य परिचय
कि त्याग आदि करने की उतावल न करे और न ही अपनी शक्ति को छिपाए,निराश न हो और सन्तोष व धैर्यपूर्वक इन छहों क्रियाओं का अभ्यास करता रहे । इनका विस्तार तो आगे क्रम से किया जाने वाला है, परन्तु यहाँ इतना बता देना आवश्यक है कि इन क्रियाओंमें देव प्रतिमा आदि का अवलम्बन संवर नहीं है । प्रत्युत समता-भाव के उस अंश का नाम संवर है जो कि इसके सत्य आलम्बन से धीरे-धीरे चित्त में उत्पन्न तथा परिवृद्ध होता जाता है।
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शुभकरम जोग सुघाट आया, पार हो दिन जात है। । 'द्यानत' धरम की नाव बैठो, शिवपुरी कुशलात है।
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