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________________ २१. साधना १२३ २. षट्लेश्या वृक्ष बैठे प्रकृति की सुन्दरता, का आनन्द ले रहे थे । बन्दरों की हालत देखकर वे हंसने लगे और बोले कि रे मूर्ख बन्दर ! तुझको ईश्वर ने दो हाथ दिये हैं, फिर भी तू अपना घर नहीं बना सकता । देख, हम छोटे-छोटे पक्षी भी कितने सुन्दर घोंसले बनाकर इनमें सुखपूर्वक रहते हैं । क्या तुझे देखकर लज्जा नहीं आती ? बस इतना सुनना था कि बन्दर का पारा चढ़ गया और उसने वृक्षपर चढ़कर सब बयों के घोंसले तोड़ दिये और उनके अण्डे फोड़ दिये । इसी से ज्ञानीजनों ने कहा है, "सीख ताको दीजिये जाको सीख सुहाय, सीख न दीजिये बान्दरा, बये का घर जाय।" ऐसा सोचकर वह सन्तोषी व्यक्ति कुछ न बोला और पृथ्वी पर पहिले से इधर-उधर पड़े हुए कुछ आमों को उठाकर पृथक् बैठ सुखपूर्वक खाने लगा। इस उदाहरण पर से व्यक्ति की इच्छाओं व तृष्णाओं की तीव्रता व मन्दता का बड़ा सुन्दर परिचय मिलता है। पहिला व्यक्ति जो वृक्ष की जड़ पर कुल्हाड़ा चलाने लगा था अत्यन्त निकृष्ट तीव्रतम इच्छा वाला था। उसकी कषाय कृष्ण वर्ण की थी, अर्थात् वह कृष्ण-लेश्यावाला था। टहने को काटने वाला दूसरा व्यक्ति तीव्रतर इच्छा वाला होने के कारण नील-लेश्यावाला था। टहनी को काटने वाला तीसरा व्यक्ति तीव्र इच्छावाला होने के कारण कापोत-लेश्यावाला था। इसी प्रकार आमों का गच्छा तोड़ने वाला चौथा व्यक्ति मन्द इच्छा वाला होने के कारण पीत-लेश्यावाला था। केवल पके हुए आम तोड़ने वाला पाँचवाँ व्यक्ति मन्दतर इच्छावाला होने के कारण पद्म-लेश्यावाला था। और वह अत्यन्त सन्तोषी छठा व्यक्ति मन्दतम इच्छावाला होने के कारण शुक्ल-लेश्यावाला था। इस प्रकार व्यक्ति की सर्व ही कषायों की तीव्रता व मन्दता का अनुमान कर लेना चाहिये। MAIADEVANA's WYANAVIA DANAWARENANOR AAINA WAN 14the MADAR षट्लेश्या वृक्ष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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