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________________ सम्मतियें शान्तिपथ-प्रदर्शन का प्रथम संस्करण पढ़ने के पश्चात् पाठकों के सैकड़ों प्रशंसा पत्र मेरे पास आये हैं । उनमें से इस ग्रन्थ के विषय में कुछ महत्वपूर्ण सम्मतियाँ ही यहाँ पर प्रकाशित कर रहा हूँ । रूपचन्द गार्गीय जैन 1 १. निर्विकल्प ध्यान के अभ्यासी, आदर्शत्यागी ९१ वर्षीय १०५ क्षु० विमल सागर जी शोलापुर - शान्तिपथ-प्रदर्शन नाम का ग्रन्थ मैंने देखा, आधुनिक ढंग पर सरल भाषा में लिखा हुआ ग्रन्थ बहुत अच्छा है सामान्य जनता में इसका प्रचार होना संभव है । श्रीमान् ब्र० जिनेन्द्र कुमार के शान्ति पथ का पुरुषार्थ लेख बहुत अच्छा है । ब्रह्मचारीजी सम्यक् ज्ञानी हैं, अच्छे लेखक हैं, और अच्छे व्याख्यान- पटु भी हैं । उनको मेरा आशीर्वाद । २८. १. ६३ के पत्र में लिखते हैं- "बाल ब्रह्मचारी रहकर क्षुल्लक दीक्षा ली इससे बड़ा सन्तोष है । ख्याति पूजा आदि के प्यासे नहीं हैं। मैंने बहुत से क्षुल्लक व्रती देखे मगर ऐसे नहीं देखे । " २. १०५ क्षु० पद्मसागरजी दक्षिण प्रान्त ब्र० जिनेन्द्र जी ने ग्रन्थ अच्छे ढंग से लिखा है, उन्होंने अपने उद्गार बहुत अच्छी तरह प्रकट किये हैं। सचमुच यह ग्रन्थ विश्वव्यापी होना चाहिये। जैसा ग्रन्थ का नाम है वैसा ही उसका भाव है। मुझे तो स्वाध्याय करने से अि आह्लाद प्रगट हुआ है । ३. १०५ क्षु० चिदानन्दजी - ६.१.६३ 1 आपने शान्तिपथ-प्रदर्शन का प्रकाशन कराकर समाज का बहुत ही उपकार किया है। वर्तमान में उसका ही स्वाध्याय कर रहा हूँ । श्री १०५ क्षु० जिनेन्द्र कुमार जी ने यह ग्रन्थ बहुत अनुभव-पूर्ण आधुनिक सरल भाषा में लिखा है । गृहस्थ धर्म का पूर्णरीति से दिग्दर्शन कराया है और समझाया है कि अपना कल्याण किस प्रकार हो सकता है। इस ग्रन्थको अधिक से अधिक संख्या में छपाकर इसका घर-घर में प्रचार होना चाहिये । ४. ब्र० श्री छोटेलालजी वर्णी अधिष्ठाता श्री शान्तिनिकेतन बावनगजाजी बड़वानी- १८. ८.६१ सौभाग्य से शान्तिपथ-प्रदर्शन देखने को मिला। पुस्तक की लेखन शैली व भाषा बिल्कुल समयोपयोगी है। वर्तमान पाठकों और अध्ययनार्थियों को तत्त्वाधान करने में बड़ी ही सरल है। निःसन्देह श्री ब्र० जिनेन्द्र जी ने इसे लिखकर बड़ी भारी कमी को पूरा किया है। ५. श्री ब्र० बाबूलाल अधिष्ठाता दि० जैन उदासीन आश्रम इन्दौर मुझे शान्तिपथ-प्रदर्शन ग्रन्थ के स्वाध्याय का अवसर मिला। इतना रोचक लगा कि कई बार पढ़ा। जो रसास्वाद आया उसका वर्णन लेखनी से नहीं कर सकता । इन्दौर में जिन उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों ने इसे पढ़ा अथवा ब्र० जी के प्रवचन सुने वे आश्चर्य चकित हो गये और अन्तरंग से उद्गार निकले कि 'मानव के लिये शान्ति- प्रदायक धर्म के स्वरूप व कर्त्तव्य का ऐसा सुगम वर्णन हमने आज तक पढ़ा न सुना।' प्राचीन ऋषियों द्वारा लिखित सिद्धान्त-ग्रन्थों में श्रुतज्ञान का महत्त्वपूर्ण अटूट भण्डार भरा है, परन्तु उसकी भाषा व प्रतिपादन शैली इतनी सुगम व आकर्षक नहीं हैं जो आज का जनसाधारण उससे लाभ उठा सके। इस बात की पूर्ति सही अर्थ में इस ग्रन्थ द्वारा हुई है, जिसकी भाषा व शैली अत्यन्त सुगम व सरल है। एक बार पढ़ना प्रारम्भ करके छोड़ने को जी नहीं चाहता तथा जिसके पढ़ने मात्र से शान्ति की प्राप्ति होती है, तो उसे जीवन में उतारने से क्यों न होगी ? मैं लेखक का परम उपकार मानता हुआ कामना करता हूँ कि मानस- मानस के हृदय मन्दिर में शान्ति हेतु शान्तिपथ-प्रदर्शन बसे । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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