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________________ (xiii) ६. श्री गोकुलचन्द गंगवाल उदासीन आश्रम बूंदी-१४.७.६१ जिस सरल शान्ति के उपाय की खोज में था वास्तव में वह विवरण शान्तिपथ-ग्रन्थ में पाया। ७. डॉ० कामता प्रसाद जैन प्रमुख संचालक विश्व जैन मिशन, अलीगंज 'शान्तिपथ-प्रदर्शन' बाल ब्र० (अब क्षु० जिनेन्द्र वर्णी) श्री जिनेन्द्र कुमार जी के प्रवचनों का संग्रह है। कोई भी वस्तु ज्ञान में यद्यपि एक है, परन्तु उसका विवेचन करने की शैलियाँ अनेक हैं । जैनागम की भाषा में इसे नय कहा जाता है । क्षु० जी की अपनी निराली शैली है, अपनी बात अपनी शैली में विश्लेषणात्मक ढंग से कहते हैं, रोचक भी बनाते हैं जिससे कि वह सर्व साधारण जनता के गले उतर जावे ।अत: उनके प्रवचन का मूल्यांकन उनकी कथन शैली और विचाराधीन नय के अनुकूल ही ठीक-ठीक किया जा सकता है । दार्शनिक क्षेत्र में विषमता तब ही उत्पन्न होती है जब कि विचारक दूसरे के मत अथवा कृति को अपने दृष्टिकोण से देखता है और विपक्षी के मत और दृष्टिकोण को नजर-अन्दाज कर देता है। जैन विद्वानों में भी कुछ इसी प्रकार का पक्ष-मोह जड़ पकड़ता जा रहा है। वे सोचें कि इससे अनेकान्त धर्म की सिद्धि किस प्रकार होगी? संसार में सब कुछ अशुद्ध ही अशुद्ध है, न जीव शुद्ध है न पुद्गल। इसका अर्थ यह कि सब कुछ पर्यायाधीन है। परन्तु इसके कारण ही शुद्धरूप अथवा वस्तुरूप-द्रव्य का यथार्थ ज्ञान सम्भव है। जैसे अन्धकार के होने पर ही प्रकाश का परिज्ञान होता है, वैसे ही अशुद्धि है तभी शुद्धि का बोध होता है, अज्ञान है तभी ज्ञान दीखता है । क्षु० जी की शैली में यह विशेषता है कि वे बाहर से अन्दर की ओर चले हैं, क्योंकि सारा संसार बहिर्द्रष्टा है और बहिर्जगत में उलझा हुआ है। क्षु० जी बाहरी स्थितियों के खरेखोटे का मूल्यांकन करते हुये अन्तर की ओर बढ़ते हैं। इसीलिये उन्होंने सैद्धान्तिक परिभाषाओं को नये रंग ढंग में ला रखा है, जो बिल्कुल स्वाभाविक है । उनके प्रवचनों में ज्ञान का चमत्कार उत्तरोत्तर बढ़ता चले, इसी में हम सबका कल्याण है। ८. वर्तमान में आर्य-गुरुकुल भैंसवाल(रोहतक) के प्रिंसिपल, वेदों और उपनिषदों के मर्मज्ञ, प्रकाण्ड विद्वान पं० विद्यानिधि शास्त्री, व्याकरणाचार्य साहित्याचार्य, साधू आश्रम होशियारपुर-२४.४.६१ ___ मैं ब्र० जिनेन्द्र जी यतिवर का प्रोक्त अति गम्भीर परन्तु सरल भाषा में वर्णित जैनागम प्रतिपादित शान्तिपथ-प्रदर्शन का अध्ययन मनन करके कृतार्थ हो रहा हूँ। ग्रन्थ क्या है सचमुच एक अमूल्य चिन्तामणि है जिसकी प्राप्ति होने पर सब कामनाओं के अभावरूप शान्तिपथ का दर्शन होता है । प्रत्येक प्रकरण को सुगमता से समझाते हुए अत्यन्त नम्र तथा अहंकार रहित अपने को तुच्छातितुच्छ मानकर अत्युज्ज्वल निर्मल आत्मतत्त्व का दर्शन कराया है। आश्रव बन्ध का प्रकरण तो इतना हृदय-ग्राही है जिसे मैं बार-बार पढ़ता नहीं थकता। शुभ क्रियाओं से भी हमारा जीवन अपराधमय है यह एक अद्भुत आत्मशोधन का मंत्र बताया है। ये शब्द स्मरण करने योग्य हैं-शुभ क्रियाओं को करने के लिए कहा जाय तो वे सुख देनेवाली हैं ऐसा मानकर उनको ही हितरूप समझने लगता है,अभिप्राय को बदलने के लिए कहा जाय तो उन क्रियाओं को ही छोड़ने के लिए तैयार हो जाता है । दोनों प्रकार मुश्किल है, किस प्रकार समझायें । ऐसे कहें तो भी नीचे की ओर जाता है और वैसे कहें तो भी नीचे की ओर ही जाता है। नीचे की ओर जाने को नहीं कहा जा रहा है भगवन् ! ऊपर उठने को कहा जा रहा है । कमाल कर दिया है । मैं तो लटू हो रहा हूँ, जब उनका जीवन भी वैसा देखता हूँ । हे प्रभु ! कृपा करो, जिनेन्द्र जी शतवर्ष-जीवी हों। ९. श्री हीराचन्द वोहरा 3. A. L... " कलकत्ता-२८.६.६१ शान्तिपथ-प्रदर्शन पुस्तक पढ़कर हृदय अत्यधिक प्रभावित हुआ। बहुत सुन्दर ढंग से लिखी गयी है ।ऐसा लगता है कि मोक्षमार्ग प्रकाशक (पं० टोडरमलजी रचित) के बाद इस प्रकार की यह रचना अपने ढंग की अद्वितीय है। ऐसी सुन्दरतम पुस्तक का बड़ा व्यापक प्रभाव हो सकता है। प्रत्येक धर्म तथा सम्प्रदाय के व्यक्ति के लिए पठनीय सामग्री का संकलन श्री पूज्य ब्र० जी की अपूर्व देन है। वे चिरंजीवी हों। इस पुस्तक की सराहना के पत्र मेरे पास अजमेर के कई मित्रों से आये हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002675
Book TitleShantipath Pradarshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinendra Varni
PublisherJinendravarni Granthamala Panipat
Publication Year2001
Total Pages346
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Biography
File Size10 MB
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