________________
१७. निर्जरा-तत्त्व
२. संस्कार - क्षति
ही गृहस्थ के वातावरण में गये और फिर वही हाल । कहाँ गई शान्ति और कहाँ गए वे विचार, कुछ पता नहीं। वही विकल्प-जाल, वही अशान्ति । कौन शक्ति है जो मेरी बिना इच्छा के मुझे धकेलकर यह सब कुछ करने पर बाध्य करती है ? वास्तव में अनादि के पड़े वे खोटे संस्कार अर्थात् पहला कर्मबन्ध ही वह शक्ति है जिससे मुझे विकल्प करने की प्रेरणा मिल रही है । इन संस्कारों के प्रति बल व साहस धारकर युद्ध ठानना ही योग्य है। तू वीर की सन्तान है, स्वयं वन, इस आध्यात्मिक युद्ध से मत घबरा ।
९६
आज तेरे पास शक्ति है उस प्रकाश की, उस ज्ञान की, उस जिज्ञासा व भावना की, उस आन्तरिक प्रेरणा की जो कि गुरुवाणी सुनने से सौभाग्यवश तेरे अन्दर उत्पन्न हुई है । अब भी यदि इन संस्कारों को न ललकारा और इनके साथ युद्ध करके अपना पराक्रम न दिखाया तो कब दिखायेगा ? क्या उस समय जबकि काल चक्र द्वारा एक ऐसे वातावरण में फेंक दिया जाएगा जहाँ न होगी गुरुवाणी, न होगा देव दर्शन, न होगी आज की भावना, न होगा यह ज्ञान व प्रकाश ; परन्तु तू होगा इन संस्कारों के प्रकोप का शिकार, बहता हुआ होगा इन विकल्पों के ऐसे तीव्र वेग में कि जहाँ तेरे हाथ पाँव मारना भी निरर्थक होगा। याद रख कि ये दुष्ट संस्कार बड़े प्रबल हैं, सदा ही अपनी रक्षा के प्रति सावधान रहा करते हैं । कभी प्राणी में ज्ञान का प्रकाश नहीं होने देते क्योंकि ये जानते हैं कि इस प्रकाश की एक किरण भी यदि हृदय में प्रवेश पा गई तो लेने के देने पड़ जायेंगे। इस कारण भय व प्रलोभन के अनेकों विकल्पों से ये कभी भी प्राणी को अवकाश लेने नहीं देते ।
आज जो तुझे यह स्वर्ण अवसर प्राप्त हुआ है इसे केवल अपना सौभाग्य समझ । सम्भवतः इस अवसर पर आकर इन संस्कारों को कुछ ऊंघ आ गई थी, तभी तो यह वातावरण तेरे द्वारा प्राप्त किया जाना सम्भव हो सका है । आज ये संस्कार स्वयं अपनी भूल पर पछता रहे हैं और देख कितने सहमे हुए से प्रतीत हो रहे हैं। इनका विरोधी वह प्रकाश जो प्रवेश कर गया है तेरे अन्दर ? उसी से भयभीत हैं ये । अब इनको सन्देह हो रहा है स्वयं अपने जीवन का । सोच रहे हैं कि कहीं इस घर को छोड़ने की नौबत न आ जाय । परन्तु इनके पास बड़ा सैन्य बल है, घबराये हुए भी ये आसानी से निकलने को तैयार नहीं । आज ये सामने न आकर छिप-छिपकर प्रहार करने की चिन्ता में हैं अतः गाफिल मत होना, जीवन में जितना समय शेष है उसे इनके साथ युद्ध करने में लगा देना। यदि इस भव में ही इनको परास्त न कर सको तो भी कोई चिन्ता बात नहीं, इनके बल को आप क्षति पहुँचाने में तो आज भी समर्थ हैं ही। यदि इसे आज ही युद्ध प्रारम्भ कर दिया तो आगे के भवों में भी आपकी इस ज्ञान-किरण को ये छीन न सकेंगे और इस प्रकार आपका युद्ध बाधित न हो सकेगा। तीन-चार भवों में बराबर युद्ध को चालू रखते हुए एक दिन आप इनको पूर्णत: परास्त कर देंगे और अबाध, शाश्वत् व विकल्प मुक्त शान्ति-रानी को वर लेंगे ।
संस्कारों को ललकार-ललकार कर इनसे ठाना जाने वाला यह युद्ध ही आगम-भाषा में कहलाता है 'तप' तथा उसके फलस्वरूप होनेवाली संस्कार - क्षति 'निर्जरा - तत्त्व' । इसमें बहुत अधिक बल लगाने की आवश्यकता है और इसीलिए इस तप को बड़े पराक्रमी तथा निर्भीक योगीजन ही मुख्यतः धारण किया करते हैं। परन्तु इसका तात्पर्य यह नहीं कि इसको तू आंशिक रूप में भी धारण नहीं कर सकता। तू इतना नपुंसक नहीं है । जितना बल लौकिक कार्यों में लगाता है यहाँ भी लगा, शक्ति को छिपाने के लिए बहाना न बना, यह तेरे हित की बात है ।
२. संस्कार - क्षति - शान्ति - प्राप्ति की दिशा में पूर्व - संस्कारों को तोड़ने के लिए, तपके द्वारा वर्तमान अल्प-स्थिति में अपनाई जाने वाली उन क्रिया-विशेषों को बताने से पहले इस स्थान पर यह बतला देना आवश्यक है कि किसी भी अच्छे या बुरे लौकिक संस्कार को बनाने का क्रम पहले बताया जा चुका है । (दे० १५.२) बस उससे उल्टा क्रम संस्कार तोड़ने का होना चाहिए । यद्यपि संस्कार तोड़ने के इस क्रम को आप सब जानते हैं क्योंकि आपके अनुभव में आया हुआ है, परन्तु विश्लेषण न कर सकने के कारण वह जाना हुआ भी न जानने के समान है, क्योंकि बिना विश्लेषण किए दीखने वाली क्रिया के क्रमिक अङ्गों के भान बिना, नवीन रूप से उस क्रिया का प्रारम्भ करके उसके अन्तिम फल को प्राप्त करना असम्भव है । मैं आपको यहाँ कोई नई बात बताने वाला नहीं हूँ, यह बात वही है जिसे आप सब जानते हैं । अन्तर केवल इतना ही है कि आप विश्लेषण रहित जानते हैं और मैं उसी का विश्लेषण करके दिखा रहा हूँ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org