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________________ षड्दर्शनसमुच्चये [का० ७. ६६६६३. अथ चतुर्थमार्यसत्यमाह-निरोधो निरोधनामकं तत्त्वं मोक्षोऽपवर्ग उच्यतेऽभिधीयते। चित्तस्य निक्लेशावस्थारूपो निरोधो मुक्तिनिगद्यत इत्यर्थः । एतानि दुःखादीन्यार्यसत्यानि चत्वारि यानि ग्रन्थकृतात्रानन्तरमेवोक्तानि तानि सौत्रान्तिकमतेनैवेति विज्ञेयम् ॥७॥ ६४. वैभाषिकादिभेदनिर्देशं विना सामान्यतो बौद्धमतेन तु द्वादशैव ये पदार्था भवन्ति तानपि संप्रति विवक्षुः श्लोकमेनमाह पञ्चेन्द्रियाणि शब्दाया विषयाः पञ्च मानसम् । धर्मायतनमेतानि द्वादशायतनानि च ॥८॥ ६६५. व्याख्या-पञ्चसंख्यानोन्द्रियाणि श्रोत्रचक्षुर्घाणरसनस्पैर्शनरूपाणि । शब्दाद्याः शब्दरूपरसगन्धस्पर्शाः पञ्च विषया इन्द्रियगोचराः। मानसं चित्तं यस्य शब्दायतनमिति नामान्तरम् । धर्माः सुखदुःखादयस्तेषामायतनं गृहं शरीरमित्यर्थः। एतान्यनन्तरोक्तानि द्वादशसंख्यान्यायतनान्यायतनसंज्ञानि तत्त्वानि, चः समुच्चये, न केवलं प्रागुक्तानि चत्वारि दु:खादीन्येव, किन्त्वेतानि द्वादशायतनानि च भवन्ति । एतानि चायतनानि क्षणिकानि ज्ञातव्यानि । यतो बौद्धा अत्रैवमभिदधते। अर्थक्रियालक्षणं सत्त्वं प्रागुक्तन्यायेनाक्षणिकान्निवर्तमान क्षणिकेष्वेवावतिष्ठते। तथा च सति ६६३. अब चौथे आर्यसत्य निरोधका वर्णन करते हैं। मोक्ष या अपवर्ग-( जिसके बाद पवर्गका कोई भी अक्षर न हो अर्थात् जिसमें पवर्गके अन्तिम अक्षर 'म'का प्रयोग हो ऐसे मोक्ष ) को निरोधतत्त्व कहते हैं । अर्थात् अविद्यातृष्णा रूप क्लेशसे रहित चित्तकी नि:क्लेश अवस्था निरोध-मुक्ति कही जाती है। __ अभी जिन दुःखादि चार आर्यसत्योंका ग्रन्थकारने वर्णन किया है वह सौत्रान्तिकमतकी दृष्टिसे समझना चाहिए ॥७॥ ६६४. वैभाषिक आदि भेदोंको विवक्षा नहीं करके सामान्यसे बौद्धमतमें जो द्वादशायतन अर्थात् बारह पदार्थ प्रसिद्ध हैं उनके कहनेकी इच्छासे इस श्लोकको कहते हैं पाँच इन्द्रियाँ, शब्दादि पांच विषय, चित्त और सुख-दुःखादि धर्मोंका आधार शरीर ये बारह आयतन हैं ॥८॥ ६६५. श्रोत्र, चक्षु, घ्राण, जिह्वा तथा स्पर्शन ये पांच इन्द्रियां, शब्द, रूप, रस, गन्ध एवं स्पर्श ये पांच उन इन्द्रियोंके विषय, मानस-चित्त, अर्थात् शब्दायतन, सुख-दुःख आदि धर्मोका आयतन-गृह अर्थात् आधारभूत शरीर-ये बारह आयतन हैं । श्लोकमें 'च' शब्द समुच्चयार्थक है। इससे यह मालूम होता है कि केवल पहले कहे गये चार आर्यसत्य ही नहीं हैं किन्तु ये बारह आयतन भी हैं। ये आयतन भी क्षणिक हैं। बौद्धोंका यह सिद्धान्त है कि-अर्थक्रिया रूप ही सत्त्व होता है, जो पदार्थ अर्थक्रिया करता है वही सत् कहा जाता है। पहले कही गयी युक्तियों के अनुसार नित्यपदार्थ क्रम तथा युगपत् दोनों ही प्रकारसे अर्थक्रिया नहीं कर सकता अतः अर्थक्रिया लक्षण सत्त्व नित्यपदार्थको छोड़कर क्षणिक अर्थमें ही आकर रहता है। ऐसी अवस्थामें यह अनुमान १. "आयतनानीति द्वादशायतनानि-चक्खायतनं, रूपायतनं, सोतायतनं, सहायतनं, घानायतनं, गन्धायतनं, रसायतनं, कायायतनं, फोटुब्बायतनं, मनायतनं, धम्मायतनं ति ।" -वि. म. पू. ३३४ । २.-स्पर्शनानि भ. २ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
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