SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 72
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६ aamannaahin षड्दर्शनसमुच्चये [का०७.१५९क्रियाणां करणाद् द्वितीयक्षणे तस्याकर्तृत्वं स्यात् । तथा च सैवानित्यतापत्तिः। अथ तस्य तत्स्व. भावत्वात् ता एवार्थक्रिया भूयो भूयो द्वितीयादिक्षणेष्वपि कुर्यात्; तदसांप्रतम्; कृतस्य करणाभावादिति। कि च, द्वितीयादिक्षणसाध्या अप्यर्थसार्थाः प्रथमक्षण एव प्राप्नुवन्ति तस्य तत्स्वभावत्वात्, भेतत्स्वभावत्वे च तस्यानित्यत्वप्राप्तिरिति । तदेवं मित्यस्य क्रेमयोगपद्याभ्यामर्थ क्रियाविरहान्न स्वकारणेभ्यो नित्यस्योत्पाद इति । ५९. अथ विनश्वरस्वभावः समुत्पद्यते; तथा च सति विघ्नाभावादायातमस्मदुक्तमशेषपदार्थजातस्य क्षणिकत्वम् । तथा चोक्तम्समयमें नहीं थी वही द्वितीय समयमें उत्पन्न हो गयी है। किसी भी अविद्यमान स्वभावका उत्पन्न होना ही अनित्यता है। यदि नित्यपदार्थ समस्त अर्थक्रियाओंको युगपत्-एक ही साथ एक ही क्षणमें उत्पन्न करता है, तो प्रथम क्षणमें ही द्वितीयादि अनन्त क्षणोंमें होनेवाले कार्यसमूह उत्पन्न हो जायेंगे। ऐसी दशा में फिर वह नित्य पदार्थ द्वितीय समयमें क्या कार्य करेगा? क्योंकि उसके द्वारा उत्पाद्य जितने कार्य थे वे तो पहले ही क्षणमें उत्पन्न हो चुके हैं। इस तरह जो नित्य प्रथम समयमें कर्ता था वही द्वितीयादि समयोंमें कर्तृत्वको छोड़कर अकर्ता बन जानेके कारण, अथवा जो प्रथम समयमें यमें कर्ता होनेसे सत् था वही द्वितीयादि समयों में अर्थक्रिया न करनेके कारण असत् हो जानेसे नित्य नहीं रह सकता है। उसमें कर्तृत्व तथा अकर्तृत्व रूपसे परिवर्तन होनेके कारण अनित्यता ही प्राप्त होती है। नित्यवादी-नित्यका अनेक कार्योंके उत्पन्न करनेका समर्थस्वभाव प्रतिक्षण जाग्रत् रहता है । अतः द्वितीयादि समयोंमें भी उसी स्वभावकी मौजूदगी होनेसे वह उन्हीं-उन्हीं कार्योंको करता रहता है, खाली नहीं बैठता। क्षणिकवादी-आपका उक्त कथन तो बिलकुल अग्राह्य है, क्योंकि-जो कार्य प्रथम समयमें उत्पन्न हो ही चुके हैं, नित्य उनको द्वितीयादि समयोंमें दुबारा कैसे उत्पन्न करेगा? एक बार जो वस्तु उत्पन्न हो चुकी है, उसकी दुबारा उत्पत्ति कैसी ? नित्य पदार्थमें जब समस्त कार्यों के उत्पन्न करने में कारणभूत समस्त स्वभाव एक ही साथ रहते हैं; तो द्वितीयादि क्षणोंमें होनेवाले सभी कार्य प्रथम ही क्षणमें उत्पन्न हो जाने चाहिए। यदि द्वितीयादि क्षणोंमें होनेवाले कार्योंको उत्पन्न करनेवाले स्वभाव प्रथम क्षणमें नहीं हैं और वे द्वितीयादि क्षणोंमें उत्पन्न होते हैं, तो अनित्यत्वका प्रसंग स्पष्ट ही है । इस प्रकार नित्य पदार्थ न तो क्रमसे ही अर्थक्रिया कर सकता है और न युगपत् ही। अतः 'स्वकारणोंसे पदार्थ अविनश्वर अर्थात् नित्य स्वभाववाला उत्पन्न होता है' यह पक्ष प्रमाणबाधित है। ६५९. यदि स्वकारणोंसे पदार्थ क्षणिक स्वभाववाला अर्थात् विनाशशील ही उत्पन्न होता है, इस पक्षमें हमारे द्वारा माने गये क्षणिक सिद्धान्तका ही समर्थन होता है । पदार्थ जब स्वभावसे ही विनाशशील है तब उसके क्षणिक होने में बाधा ही क्या हो सकती है । इस तरह हमारा क्षणिक सिद्धान्त निर्बाधरूपसे सिद्ध हो जाता है । कहा भी है १. अथ तत्स्व-म. २। २. "क्रमाक्रमाभावस्यार्थक्रियासामर्थ्याभावेन व्याप्तत्वात् । तथा हि न तावत् क्रमाक्रमाभ्यामन्यः प्रकारोऽस्ति, येनार्थक्रियासंभावनायां क्रमाक्रमाम्यामर्थक्रियाव्याप्तिनं स्यात् । तस्मादर्थक्रियामात्रानुबद्धतया तयोरन्यतरप्रकारस्य । उभयोरभावे चाभावादर्थक्रियामात्रस्येति ताम्यां तस्य व्याप्तिसिद्धिः।"-क्षणम, सि. पृ. ५५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002674
Book TitleShaddarshan Samucchaya
Original Sutra AuthorHaribhadrasuri
AuthorMahendramuni
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1981
Total Pages536
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy